Tuesday, August 28, 2012

बिखरे सपनो की किरचें घायल करती हैं

"बिखरे सपनो की किरचें घायल करती हैं,
शब्द खड़े हैं रस्तों में अब शातिर से
सहमा सा छाता अब व्याख्या करता है हर बादल की
पगडंडी के पाखंडी सच से गुजर रहे ग़मगीन समाजों के सच को भी देखो
तो बात करो बरसातों की
उसमें आंसू की बूँद तुम्हारी भी होगी." ----राजीव चतुर्वेदी

Saturday, August 25, 2012

हम दरअसल अमेरिका के गुलाम हैं

"अगर यह लड़ाई लोकतंत्र की होती तो अच्छा था...अगर यह लड़ाई जनादेश की होती तो अच्छा था ...अगर यह लड़ाई कोंग्रेस -भाजपा--सपा-वाम--NDA-UPA की होती तब भी अच्छा था...यह लड़ाई हिन्दू -मुसलमान की भी नहीं है. यह लड़ाई तो KGB Vs. CIA है जिसमें जनादेश या हम भारतीय नागरिकों की इच्छा बेमानी है. हमारा प्रधानमंत्री चुनाव जीत कर नहीं आता बल्कि "मेड बाई अमेरिका" आता है. हमारे क़ानून "मेड बाई अमेरिका" आते हैं. हमारा राष्ट्रपति "मेड बाई अमेरिका" होता है. सोनियां इलाज करवाने जाती हैं तो अमेरिका. यह अमरीकी गुर्गे भारत की राजनीति में सेंध फोड़ कर घुस आये हैं चुनाव जीत कर हमारा जनादेश ले कर नहीं आये. एशिया में सोवियत रूस के वर्चस्व को मात देने के लिए अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को गोट बनाया था और भारत को मात देने के लिए मन मोहन सिंह को गोट बनाया है. मन मोहन सिंह भारतीय राजनीति के टेस्ट ट्यूब बेबी होते तो स्वीकार कर लिए जाते...वह भारतीय राजनीतिक पालने मैं पल रही लोकतंत्र की नाजायज संतान हैं. यह अमरीकी वायरस भारतीय राजनीति में जब से घुसे है भारत की राजनीति वायरल फीबर से ग्रस्त है. चूंकि मन मोहन सिंह जनता से सीधे चुन कर तो आये नहीं हैं इस लिए जनता के प्रति जवाबदेह भी नहीं हैं वह अमेरिका के द्वारा भारत पर थोपे गए हैं इस लिए अमेरिका के प्रति जवाब देह हैं और आज की तारीख में हम दरअसल अमेरिका के गुलाम हैं." ----राजीव चतुर्वेदी



Friday, August 24, 2012

गैलीलियो और गुलेलों के बीच

"गैलीलियो और गुलेलों के बीच सभ्यता के शिलान्यासों को भी देख,
आसमानों और धरती के बीच असमान से अहसासों को भी देख
एक सूरज सहम कर शाम को बिजली के खम्बे में लटक कर आत्महत्या कर चुका है
दूसरी सभ्यता ऐसी है कि उसकी रात ही गुलजार होती है
एक अभागन माँ,   बेटी की विवशता जानती है और रो-रो के सोती है
जानती है सुबह तक बेटी लौटेगी अपनी देह के अनुपात में कुछ दाम लेकर चेहरा दामन से लपेटे
चांदनी के चरित्रों का चर्चा सुन के सूरज सिहर जाएगा
एक सूरज सहम कर शाम को बिजली के खम्बे में लटक कर आत्महत्या कर चुका होगा आसमानों और धरती के बीच असमान से अहसासों को भी देख  
गैलीलियो और गुलेलों के बीच सभ्यता के शिलान्यासों को भी देख."  ----- राजीव चतुर्वेदी 


Tuesday, August 21, 2012

ज़रा हाथ दिखाओ, --- कहीं खंजर तो नहीं ?

"तेरी मुस्कराहट मेरी नज़रों का धोखा भी तो हो सकती है,
ज़रा हाथ दिखाओ, --- कहीं खंजर तो नहीं ?
हर बार किसी घर से निकाला है मेरे अपनों ने,
सोचता हूँ बारहा फिर वही मंजर तो नहीं ?
मैंने तो रिश्ते के पौधे भी लगाए थे यही सोच कर
इन दरख्तों के साए में कुछ अपने भी यहाँ बैठेंगे
प्यार के पौधे दरख़्त बनने से पहले ही यहाँ सूख गए ,
हौसले अब हाँफते हैं, सोचता हूँ, ---कहीं तेरे जहन की जमीन ही बंजर तो नहीं ? "
----राजीव चतुर्वेदी 

Sunday, August 19, 2012

ईद को कैसे कहूं मैं अब मुबारक ?



"ईद को कैसे कहूं मैं अब मुबारक ?
खून जो फैला है सड़क पर वह भी तो मेरा ही है
जिस वतन में हो रहा है यह रमजान की रस्मों की तरह
उस देश का गुनाह है यह महज़
कि हज़रत मुहम्मद महफूज थे इस देश में उस दौर में जब यजीदी कारवाँ कोहराम करता था 
फातिमा के आंसुओं में अक्स है इंसानियत का
सूफियानो की यहाँ औलाद सुन लें और सोचें
कातिलों की यह कतारें कर रही अब अलविदा हैं
अलविदा नावाजों को...मुहम्मद के नवासों को ...अमन की हर रिवाजों को
और यह भी तो बताओ तुम हमें
होली और दीपावली की बधाई तुम कभी भी क्यों नहीं देते ?
और जब हमने आदाब कह कर अदब तुमको दिया
"जय राम जी की"... तुम्हारी जुबान से भी क्यों नहीं फूटा ?
यह माना कि तुम बन्दे हो खुदा के पर कभी बन्दे मातरम क्यों नहीं कहते ?
खौफ खाओ खुदा का, सूफियानो के न तुम वारिस बनो
जो मरे हैं माँ तो उनकी फातिमा भी है
जिन्दगी की इस कर्बला में तुम किधर हो ?
सूफियों के इस वतन में सूफियानो के सिपाही या यजीदी काफिले यह ?
ईद की कैसे कहूं मैं अब मुबारक ?
ईद की किसको कहूं मैं अब मुबारक ?
फातिमा मेरी थी तो सीता उसके पहले तेरी थी यह याद रख
इस धरा पर "गोधरा" तैने किया कह दे याजीदों से
तेरे पुरखे यहीं इस देश के ही थे, यहाँ के ख्वाब तेरे हैं, यहाँ की ख़ाक तेरी है
तू चूम ले इस देश की धरती को,--- यही है फ़र्ज़ अब तेरा
तुम कहो एक बार बन्दे मातरम मैं कहूंगा ईद तुमको हो मुबारक !!
" -----राजीव चतुर्वेदी

Saturday, August 18, 2012

न्यायिक दृष्टिकोण का यह खतना तो खलिश पैदा कर रहा है

"पाकिस्तान में औसतन प्रति दिन ४० मुसलमान इस्लामिक आतंकवाद की घटनाओं में मारे जाते हैं पर इससे मुसलमान आंदोलित नहीं होते. अफगानिस्तान में औसतन प्रतिदिन २८ मुसलमान इस्लामिक आतंकवाद में मारे जाते हैं इस पर मुसलमान नहीं भड़कते. भारत में हुई आतंकवाद की घटनाओं पर कभी कोई किसी भी प्रकार का मुसलमान खेद व्यक्त करता हो या आतंकवाद की घटना की निंदा करता हो तो बताओ ? लेकिन म्यांमार की घटना का मुम्बई, लखनऊ, कानपुर,इलाहाबाद में हिंसा और तोड़ फोड़ हो रही है. कुल मिला कर बात यह कि मुसलमान आतंकवादी या दंगाई जब तक किसी दूसरे को मारते हैं तब तक शातिराना चुप्पी है और जब मारे जाते हैं तो छाती पीटी जाती है. भारत में इस्लामिक आतंकवाद  से प्रति वर्ष इतने लोग मरते हैं कि जितने किसी भी युद्ध में नहीं मरे पर उसकी निंदा करता या सांत्वना देता कोई बयान कहीं नहीं सुनाई पड़ता,--- तब कहाँ चले जाते हैं मुल्क के तरक्की पसंद, अमन पसंद मुसलमान ? है कोई अमन पसंद मुसलमान ? है कोई राष्ट्र प्रेमी मुसलमान ? ---तो बोलते क्यों नहीं ? अगर ऐसे में भी अमन पसंद मुसलमानों की चुप्पी रही तो मुल्क तो यह मान ही लेगा कि मुसलमान केवल साम्प्रदायिक ही नहीं हैं बल्कि दहशतगर्द दंगाईयों के साथ हैं और भारत राष्ट्र को तोड़ने की साजिश में मूक या मुखर हो कर शामिल हैं. कश्मीर के विस्थापित पंडितों के लिए कभी किसी मुसलमान ने आवाज़ उठाई हो तो बताओ ? औरंगजेब के द्वारा हिन्दू मूर्ति / मंदिर तोड़ना जायज था, लखनऊ में अलविदा की नवाज़ के बाद बुद्धा पार्क में भगवान् बुद्ध की और महावीर भगवान् की मूर्ति तोड़ना जायज है, बामियान में तालिबान द्वारा बुध प्रतिमाएं तोड़ना जायज है तो फिर बाबरी मस्जिद तोड़ा जाना क्यों नाजायज है ?  जम्मू -कश्मीर में इस्लामिक आतंकवादीयों ने दर्जनों मंदिर जला डाले कहीं से किसी मुसलमान के मुंह से साम्प्रदायिक सौहार्द के स्वर नहीं फूटे,--क्यों ? लेकिन बाबरी मस्जिद के लिए श्यापा आज तक जारी है जबकि उसी दौर में हजरत मुहम्मद साहब की बनवाई हुई मस्जिद चरार -ए-शरीफ को इस्लामिक आतंकवादी मस्तगुल ने जला कर राख कर दिया तो कोई बात नहीं. कुल मिला कर अगर मामला इस्लामिक आतंकवाद का है तो मुसलमान उसकी मुखर या मूक पक्षधरता करते हैं और जब कहीं मारे जाते हैं तो श्यापा करते हैं. माना कि शारीरिक खतना मुसलमानों की साम्प्रदायिक शिनाख्त है पर यह न्यायिक दृष्टिकोण का यह खतना तो खलिश पैदा कर रहा है."---- राजीव चतुर्वेदी 


Monday, August 13, 2012

यह षड्यंत्र है लोकतंत्र नहीं

"15 अगस्त'1947 से 15 अगस्त 2012 के बीच के सफ़र में हम कहाँ हैं ? भारत बनाम इंडिया की खाई और गहरी हुई है इस कृषि प्रधान देश को चलाता है 70 % ग्रामीण भारत और उस पर ऐश करता है 30% शहरी भारत. सरदार मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जो भारत की अर्थ व्यवस्था की अर्थी ही निकल गयी है. अब बजट में सुविधाओं का बटवारा भी अमीर और गरीब के लिए अलग अलग है अब अमीरों को Consumer Index यानी "उपभोक्ता सूचकांक" के आधार पर सुविधाएं दी जा रही हैं और गरीबों को Gross Domestic Product यानी कि "सकल घरेलू उत्पाद" के हिसाब से. बात साफ़ है कि अमीर को उसकी उपभोग करने की क्षमता के हिसाब से सरकार सुविधा देगी और गरीब को सुविधाएं दिए जाने से पहले यह पूछा जाएगा कि तुमने क्या उत्पादन किया है या तुम्हारी कमाई कितनी है ? ... या तुम्हारी तो औकात क्या है ? परिणाम सामने है दवा मंहगी और दारू सस्ती हो रही है. रोडवेज बस का किराया बढ़ रहा है, हवाई जहाज का किराया घट रहा है. खेतों में अन्न उगाना अलाभकारी धंधा है खेतों की प्लोटिंग करना बहुत लाभकारी है. देश में सभी वस्तुओ के दाम आसमान पर पहुँच गए बस कृषि उत्पादन के दाम नहीं बढ़ रहे क्यों ? फसल जब तक किसान के यहाँ रहती है सस्ती होती है और जैसे ही आढतियों के यहाँ पहुँच जाती है मंहगी हो जाती है.
देश की सीमा की रक्षा करता है गाँव का बेटा....देश और प्रदेश की सरकारें बनती हैं गाँव के वोट से...देश का पेट भरता है गाँव के कृषि उत्पाद से...शहर के लोग गाँव के लोगों से अधिक प्रति व्यक्ति दूध/ दही /घी /सब्जी का उपभोग करते है. शहर के मिल का मालिक होता है शहर का आदमी और मजदूर होता है गाँव का आदमी. शहर में साहब होता है शहर का आदमी यानी "इंडिया" और नौकर होता है गाँव का आदमी यानी "भारत". आज भी शहर के अभिजात्य पब्लिक स्कूलों और गाँव के टाट पट्टी वाले स्कूलों के बीच सामान शिक्षा का नारा मुह बाए खड़ा है. अर्जुन और एकलव्यों के स्कूल आज भी अलग-अलग हैं. पब्लिक स्कूलों के पढ़े लोगों के लिए गाँव से गुलाम ढालने के लिए गाँव के स्कूल चलाये जा रहे हैं.----यह षड्यंत्र है लोकतंत्र नहीं."------राजीव चतुर्वेदी


अब समझ लीजिए न्याय कैसा होता होगा ? "


"1992 में नागुर बार एसोसिएसन के समारोह में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन. वेंकटचलैया बिफर पड़े थे. उन्होंने कहा था --- "मैं 90 जजों को जानता हूँ जो दारू और दावत के लिए वकीलों के घर शाम को आ धमकते हैं. मैं ऐसे जजों को भी जानता हूँ जो लालच और अवैध लाभ के लिए विदेशी दूतावासों के दरवाजों पर दस्तक देते घूमते हैं." यह नहीं कि न्याय पालिका के शीर्ष से संताप का यह स्वर पहली बार फूटा हो, पहले भी लोग यही कहते रहे हैं और आज भी यह क्रम जारी है.  "न्यायपालिका में कुछ सड़े अंडे सडांध पैदा कर रहे हैं. न्यायिक विलम्ब और भ्रष्टाचार का परष्पर रिश्ता है. ---सोली सोराबजी (तत्कालीन ) एटोर्नी जनरल ऑफ इंडिया. "भ्रष्ट जजों पर मुकदमा चलाने के लिए ट्रिब्यूनल होना चाहिए . कोई जज तब तक सफल भ्रष्ट नहीं हो सकता जब तक उसके भ्रष्टाचार को वकीलों का सक्रीय सहयोग न हो." --जे.एस.वर्मा (तत्कालीन ) मुख्य न्याधीश सुप्रीम कोर्ट. "मुंबई के न्यायाधीश ने माफिया डोन छोटा शकील से 40 लाख रुपये लिए और वह अब फरार है. पुलिस को अब इस जे.डब्लू.सिंह नामक जज की तलाश है. हम उसकी गिरफ्तारी पर रोक नहीं लगायेंगे."---मुंबई उच्चन्यायालय की खंड पीठ. आज की न्यायिक व्यवस्था पर इन तमाम "ख़ास लोगों" की टिप्पणीयाँ भी उतनी प्रमाणिक और सटीक नहीं हो सकतीं, जितनी देश के "आम आदमी" की राय. क्यों नहीं देश के जन -गण -मन से पूछा जाता है कि देश की न्याय व्यवस्था कैसी है ? अदालतों के गलियारों में फूलती दम और पिचकी जेब लिए वादकारी से पूछो कि वह कैसा न्याय किस कीमत पर भोगता है ? गाँव की सिकुडती झोपडी और शहर में वकील की बड़ी होती कोठी का परस्पर समानुपातिक रिश्ता है. सुना है न्याय की देवी की आँखें बंद हैं और यह भी सुना है कि वह देखने के लिए "कोंटेक्ट लेंस" लगाती है. है कोई कोंटेक्ट ? 
जो मुंसिफी की परीक्षा में असफल हुआ वह भी वकालत करने लगता है. फिर चालू होता है चतुरता , चापलूसी और चालाकी का अद्भुत समीकरण. इस समीकरण का एक उपकरण है राजनीति. सभी का योग बना दो तो उच्च न्यायालय का जज बनने का संयोग विकसित होता है. इस संयोग में अभिषेक मनु सिंघवी का जज बनाने का नुस्खा भी शामिल है और एस.सी.माहेश्वरी जैसी जज बनाने की कई आढतें भी हैं. बहरहाल नारायण दत्त तिवारी और अभिषेक मनु सिंघवी जैसी प्रतिभाओं की "ख़ास" सेवा कर हाई कोर्ट का जज बनेवालों की फेहरिश्त शोध का विषय है. उच्च न्यायालय में न्याय के नाम पर जो हो रहा है जगजाहिर है. किस प्रक्रिया से स्थानीय वकील उसी उच्च न्यायालय में जज नियुक्त किये जा रहे हैं जहा वह दसियों साल वकालत कर रहे थे और वकीलों की गुटबाजी का हिस्सा थे. फिर उच्च न्यायालय के अधिकाँश जजों के बेटे -बेटी, भाई-भतीजे उसी उच्च न्यायालय में वकालत करते हैं और चालू होता है तेरा लड़का मेरी अदालत में और मेरा लड़का तेरी अदालत में का गारंटी फार्मूला. दूसरी ओर न्याय के इन गलियारों में कोई न्याय पाने नहीं आता यहाँ लोग मुकदमा जीतने आते हैं.      
गुजरे साल "ओ.आर.जी. मार्ग" ने एक सर्वेक्षण किया था. देश के नागरिकों ने न्यायपालिका को भी भ्रष्ट माना और अंक तालिका में भ्रष्टाचार के लिए 5.4 अंक दिए.बेहमई की विधवाएं न्याय की गुहार आज तक कर ही रहीं है और फूलन देवी इस बीच दो बार सांसद हो कर ससम्मान संसदीय भाषा में स्वर्गवासी भी हो गयी. दस्यु सरगना मलखान सिंह सौ से अधिक मुकदमों में "बाइज्जत बारी" हो गया. मुकदमा चलाते-चलाते लाखू भाई पाठक मर गए और नरसिम्हा राव दोष मुक्त हो गए. भोपाल गैस काण्ड का क्या हश्र हुआ ? मुंबई के एक जज जे.डब्लू. सिंह के छोटा शकील से रिश्ते, उन्हें 40 लाख का लाभ दे देते हैं, बदले में जज साहब उस गिरोह के कुछ सदस्यों को जमानत दे देते हैं.
  अदालतों की शब्दावली में "पैरोकार" बड़ा रहस्यमय शब्द है. जज साहब के सामने उनका पेशकार जब हाथ नीचे बढ़ा कर मुन्सीयों /वकीलों /वादकारियों से हाथ में जो लेता है उसे "पैरोकारी" और "कार्यवाही" कहा जाता है. यह "संज्ञेय अपराध" जज साहब की निगाहों के सामने जब हो रहा होता है तब वह रंगमंच के किसी मजे पात्र के जैसे जज साहब किसी फाइल को पढने का कार्यक्रम करने लगते हैं. दरअसल पैरोकारी से ही पेशकार शाम को मेंम साहब के पास तरकारी पहुंचाता है. 26 जनवरी 1997 को हमीरपुर (उत्तर प्रदेश) में वहां के विधायक अशोक चंदेल ने सरेबाजार दो अबोध बच्चों सहित पांच लोगों को सरे बाज़ार गोलियों से भून दिया. हामीरपुर का अधिकार क्षेत्र इलाहाबाद उच्चन्यायालय को है जहाँ अशोक चंदेल की गिरफ्तारी रोकने की याचिका जब खारिज कर दी गयी तो उसने लखनऊ में "पैरोकारी" की और इसी पैरोकारी के प्रताप से उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के पीठासीन एक जज ने उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी. इन जज साहब ने 5 बार अशोक चंदेल की गिरफ्तारी पर रोक लगाई. जब पाप का घड़ा भर गया तो मुख्य न्यायाधीश को अपने इस साथी जज के आचरण पर संदेह हुआ और अशोक चंदेल की गिरफ्तारी के आदेश हुए. 23 अक्टूबर 98 को अशोक चंदेल ने हमीरपुर के अतिरिक्त जिला जज आर.बी.लाल की अदालत में समर्पण किया. "पैरोकारी" का प्रताप यहाँ भी काम आया. जज आर.बी लाल ने बिना दूसरे पक्ष को सुने, बिना अभियुक्तों को जेल भेजे तत्काल जमानत देदी. आर.बी.लाल नामक इस जज को इसी हरकत के कारण 30 अक्टूबर 1998 को उच्चन्यायालय ने निलंबित कर दिया.
      निर्मल यादव पंजाब एंड हरियाण उच्च न्यायलय की जज थीं उन पर आरोप यह था कि रिश्वत के लिए 15 लाख रूपए की पोटली उनके यहाँ भेजी गयी लेकिन घूस लेकर गया कर्मचारी भूलवश मिलते- जुलते नाम वाली एक अन्य महिला जज निर्मल जीत कौर के यहाँ 13 अगस्त' 08 को घूस दे आया. याह घूस हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल ने भिजवाई थी. न्यायमूर्ति निर्मल जीत कौर ने रिपोर्ट दर्ज करवा दी जिसकी विवेचना CBI ने की और अभियुक्त जज निर्मल यादव व अन्य के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल कर दिया . इस बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश ने जज निर्मल यादव की विभागीय जांच भी करवाई. यह जांच इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एच. एल. गोखले की अध्यक्षता में हुई. इस जांच समिति ने भी उनको भ्रष्टाचार का दोषी पाया और पड़ से हटाने की सिफारिश की. लेकिन फिर रहस्यमय तरीके से भारत के अटॉर्नी जनरल मिलन बनर्जी ने विधि मंत्रालय को यह मुकदमा वापस लेने की सलाह दी और आज कल यही निर्मल यादव उत्तराखंड उच्च न्यायलय की पीठासीन जज हैं....अब समझ लीजिए न्याय कैसा होता होगा ? " ----राजीव चतुर्वेदी

Saturday, August 11, 2012

इस 15 अगस्त के माने ही क्या है ?"

"ये कहाँ आ गए हम ? 15 अगस्त'1947 से 15 अगस्त'2012 तक की यात्रा पर गौर करें. राष्ट्र एक भावनात्मक अवधारणा है जिसे जब हम अमल में लाते हैं तो उसका भौतिक स्वरुप विकसित होता है. 1947 में भी देश में हिन्दू नागरिक शरणार्थी शिविरों में थे और 2012 में भी. तब भी पाकिस्तान ने इस्लाम का झंडा हाथ में लेकर हमला किया था इधर राजस्थान ,पंजाब, जम्मू -कश्मीर पर पाकिस्तान का हमला था उधर असम-पश्चिम बंगाल पर पूर्वी पाकिस्तान (अब बँगला देश का ) हमला था. आज भी जम्मू कश्मीर के विस्थापित कश्मीरी पंडितों की सुध लेने वाला कोई नहीं क्योंकि जब वह वहां रहते ही नहीं हैं तो उनका वोट बैंक भी नहीं है. चूंकि मामला पाकिस्तान का कम इस्लाम का ज्यादा है इसलिए एक -एक कर हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है. जो कश्मीर में प्रयोग सफल रहा वही प्रयोग असम में दोहराया जा रहा है. देश में इस्लामिक आतंकवाद से तब भी भगदड़ थी देश में अब भी इस्लामिक आतंकवाद के कारण भगदड़ है. अगर जम्मू -कश्मीर के विस्थापितों के पुनर्वास की कोई स्पष्ट योजना नहीं. अगर असम के हिन्दुओं को सुरक्षा देने की कोई स्पष्ट नीति नहीं तो इस 15 अगस्त के माने ही क्या है ?"
"लालकिले के प्राचीरों पर जा लटके चमगादड़ सारे,
और तिरंगा रोया कितना जन -गण -मन के राग पर." ----- राजीव चतुर्वेदी


Friday, August 10, 2012

प्रथम कृषक नेता श्री कृष्ण जन्म दिवस की बधाई

"युद्ध और बुद्धि के समानुपातिक चरित्र, दार्शनिक , विछोह की विडंबना पर प्यार के प्रणेता. प्रथम कृषक नेता श्री कृष्ण जन्म दिवस की बधाई !! राजशाही के भोगवाद के विरुद्ध उत्पादकों का आन्दोलन चलाने वाले श्री कृष्ण के नाम पर ही उनके कार्यकर्ताओं को कृषक कहा गया." -----राजीव चतुर्वेदी


Sunday, August 5, 2012

मैं वह बरगद हूँ

"मैं वह बरगद हूँ
जो इसी राज मार्ग पर खड़ा हुआ था वर्षों से
मैं वह बरगद हूँ
जो इसी राज मार्ग पर पड़ा हुआ हूँ अब मेरी छाया को तरसोगे
वह रस्ते जो मेरी छाया में सुस्ताते थे,... खामोश खड़े हैं
हम तो गुजरी पीढी के हैं... गुजर गए
इन रस्तों से तो युग भी गुजरे हैं
खेतों की मेड़ें टूट रहीं अब प्लॉटों की पैमाइश से
इच्छाएं आकार ले रहीं जेबों की गुंजाइश से 
हम तो गुजरी पीढी से हैं गुजर गए
गुलशन की अब बात गुनाहों सी लगती है ...गुलदस्ते सस्ते होते हैं
यह सड़कें अब विस्तार ले रही
और सभ्यता फ़ैल रही है
दूर तलक देखो तो देखो
वहां टाल पर मेरी लकड़ी तौल रही है
वह जो चिड़िया चहक रही थी मेरी डाल पर अब गवाह है
ह्त्या मेरी हुयी यहाँ है
चिड़िया की चिंता पर चर्चा कौन करेगा ?
एक मौन अब भी तारी है
कटते पेड़ कभी तुम देखो ...संकेतों से समझो तुम भी
यहाँ तुम्हारी भी बारी है.
" ----राजीव चतुर्वेदी 

Thursday, August 2, 2012

सात्विकता को संबोधित



"विश्व में या यों कहूं कि सम्पूर्ण मानव सभ्यता में रक्षा बंधन जैसे पर्व कहीं नहीं हैं. नारी को केवल भोग्या समझने वाली संस्कृतियाँ देख लें कि भारतीय या यों कहें कि हिन्दू संस्कारों में नारी को उसके विभिन्न स्वरूपों में आदर दिया गया है. समाज में एक पुरुष और स्त्री के 
पति-पत्नी  के परस्पर स्वाभाविक रिश्ते हैं...प्रेमी -प्रेमिका के भी रिश्ते हैं पर कितनो से ? --शेष वृहद् समाज में स्त्री-पुरुष संबंधों की सात्विकता को संबोधित करनेवाला यह एक मात्र पर्व है. रक्षा बंधन की बधाई !!" ----राजीव चतुर्वेदी
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"रक्षा -बंधन केवल भाई -बहनों का ही त्यौहार नहीं है ---यह सभी प्रकार के रक्षित और रक्षक के बीच का अनुबंध है. पहली राखी इन्द्र ने अपनी पत्नी शचि के बांधी थी. हुआ यों कि इन्द्र ने असुर कन्या शची से विवाह किया था. रावण "रक्ष -सह" (हम अपनी रक्षा स्वयं करेंगे ) आन्दोलन का प्रणेता और प्रकांड विद्वान् होने के साथ ही पराक्रमी भी था. वह इंद्र की ऐन्द्रिक हरकतों या यों कहें कि चरित्र हीनताओं से छुब्ध हो अक्सर इंद्र का लात -जूता संस्कार करता था. पर अईयास इंद्र नहीं सुधरा. चुकी राज सत्ता इंद्र के पास थी अतः इंद्र ने रावण और उसके समर्थकों को धमकी दी कि राज सत्ता आपकी सुरक्षा नहीं करेगी. इस पर रावण ने "रक्ष -सह" (हम अपनी सुरक्षा स्वयं करेंगे ) आन्दोलन चलाया. और इस प्रकार रावण के समर्थक "राक्षस" कहलाये. और इंद्र की राज सत्ता के सुर से सुर न मिलाने वाले रावण के अनुयाई "असुर" कहलाये. रावण के समर्थक अपने हाथों में रावण की सरकार द्वारा जारी जो गंडा (कलावा ) बांधते थे वह दरअसल रावण की सत्ता द्वारा जारी रक्षा करने का अनुबंध होता था जिसे रक्षा बंधन कहा जाता था. इधर इंद्र अपनी ऐन्द्रिक हरकतों से बाज नहीं आया उसने एक असुर कन्या शचि का अपहरण करके उससे विवाह कर लिया जिससे क्रोधित हो असुरों ने उसपर हमला कर दिया कामुक इंद्र भागा और अपने रनिवास में घुस गया वहां उसने शची के राखी बांधी और अपनी रक्षा करने के लिए अनुबंधित किया. और इस प्रकार शचि ने रनिवास से बाहर आकार अपने पति इंद्र की जान बचाई. ---रक्षा बंधन की बधाई. " ----राजीव चतुर्वेदी


   

Wednesday, August 1, 2012

और मैं आस में इन्कलाब लिए बैठा हूँ

"लोग लाशों में भी इश्क तलाश लेते हैं,
और मैं आस में इन्कलाब लिए बैठा हूँ."
---राजीव चतुर्वेदी

जजवात का जोखिम नहीं जेबों के बजन देखो

"बेचैन से शब्दों में बेबस सी शिकायत है,
संवेदना में उनकी शातिर सी किफायत है
मुलजिम का मुकद्दर वह क़ानून से पढता है
हर जुल्म की जहां उसमें रियायत ही रियायत है
यह दौर ही ऐसा है, यहाँ ऐसी रवायत है
बदकार को ही मिलती हाकिम की हिमायत है
जजवात का जोखिम नहीं जेबों के बजन देखो
इन्साफ की इमारत में बिकती तो इनायत है ."

----राजीव चतुर्वेदी