"मैं मुक्तक से मुक्त हुआ अब कविता तुम ही कर लेना ,
मैं चेतना और वेदना का अनुवाद करने जा रहा हूँ
तुम शब्दों में तुकबंदी ढूंढो
तुकबंदी में सत्य सदा तुतलाता रहता
भाषा के व्याकरण तलाशो
अलंकार के हर प्रकार में उलझाओ तुम सच को जितना
दोराहे पर खड़ी वेदना चीख रही है
शब्दों के सांचे में उसको ढाल रहे हैं वह तो 'सच' को सचमुच मार रहे हैं
वेदना के सांचे में शब्दों को ढालो
चीख उठोगे जिस भाषा में कविता उसमें बन जायेगी
इस शब्दों को पीटो अपनी पीड़ा से तुम ...पैने थोड़े बन जायेंगे
उनसे तुम तलवार बनाओ
शब्द ढलें तो ढाल बनाओ
तितली से कह दो वह तलवारों की धार पर बैठे
फूलों पर ही नहीं वह उपवन के हर खार पर बैठे
युद्ध क्षेत्र मैं पतझड़ की पैमाइश करता है बसंत जब ...कविता की खेती होती है
ऐसी कविता शंखनाद का घोष करेगी
तुकबंदी में तुतलाती कविता तर्क तथ्य और सत्य से कितनी दूर खड़ी है
अंगारों पर श्रंगारों की खेती मत कर
शब्दों के संकोचित सहमे से हर रिसाव में बहती कविता जन कविता है
तुम तुकबंदी कर चापलूस से चालीसे लिखना
मेरे शब्द समर्पित उसको
मैं मुक्तक से मुक्त हुआ अब कविता तुम ही कर लेना ,
मैं चेतना और वेदना का अनुवाद करने जा रहा हूँ ." ----- राजीव चतुर्वेदी
मैं चेतना और वेदना का अनुवाद करने जा रहा हूँ
तुम शब्दों में तुकबंदी ढूंढो
तुकबंदी में सत्य सदा तुतलाता रहता
भाषा के व्याकरण तलाशो
अलंकार के हर प्रकार में उलझाओ तुम सच को जितना
दोराहे पर खड़ी वेदना चीख रही है
शब्दों के सांचे में उसको ढाल रहे हैं वह तो 'सच' को सचमुच मार रहे हैं
वेदना के सांचे में शब्दों को ढालो
चीख उठोगे जिस भाषा में कविता उसमें बन जायेगी
इस शब्दों को पीटो अपनी पीड़ा से तुम ...पैने थोड़े बन जायेंगे
उनसे तुम तलवार बनाओ
शब्द ढलें तो ढाल बनाओ
तितली से कह दो वह तलवारों की धार पर बैठे
फूलों पर ही नहीं वह उपवन के हर खार पर बैठे
युद्ध क्षेत्र मैं पतझड़ की पैमाइश करता है बसंत जब ...कविता की खेती होती है
ऐसी कविता शंखनाद का घोष करेगी
तुकबंदी में तुतलाती कविता तर्क तथ्य और सत्य से कितनी दूर खड़ी है
अंगारों पर श्रंगारों की खेती मत कर
शब्दों के संकोचित सहमे से हर रिसाव में बहती कविता जन कविता है
तुम तुकबंदी कर चापलूस से चालीसे लिखना
मेरे शब्द समर्पित उसको
मैं मुक्तक से मुक्त हुआ अब कविता तुम ही कर लेना ,
मैं चेतना और वेदना का अनुवाद करने जा रहा हूँ ." ----- राजीव चतुर्वेदी