Friday, May 17, 2013

हिन्दी -दोहरी निष्ठा लेकर प्रतिष्ठा की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती

"दोहरी निष्ठा लेकर प्रतिष्ठा की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती ...प्रतिष्ठा के लिए एकनिष्ठ होना पड़ता है . भारतीय भाषाओं और समाज के साथ यही विडंबना है . भारत में रहने वाले यहाँ तक की जिनका जिनके पुरखों का भी जन्म यहीं हुआ उनके तीर्थ, उनकी आस्था और निष्ठा अरब देशों में बसती है ...पाकिस्तान में बसती है पर भारत में नहीं उनकी दोहरी निष्ठाएं हैं इसी लिए अरब देशों में यह दोयम दर्जे के नागरिक हैं ,पाकिस्तान में मुहाजिर हैं और भारत में संदेहास्पद।
जिन महिलाओं की शादी के बाद दोहरी निष्ठा होती है वह मायके और ससुराल के बीच त्रिशंकु सी टंगी रहती हैं और उनके परिवार टूट ही जाते हैं ...दोनों ही जगह वह संदेहास्पद होती हैं।
हिन्दी भाषा को भी दोहरी निष्ठा से ख़तरा है ...हिन्दी अंग्रेजी से नहीं पराजित है हिन्दी अपने गर्भ से जन्मी उन भाषाओं के कारण टूट रही है जिनकी वर्तनी और लिपि देवनागरी है ....हिन्दी भाषी समाज में दोहरी निष्ठा हिन्दी के लिए वैसे ही घातक है जैसे देश में रह रहे मुसलमानों की दोहरी निष्ठा या विवाहित स्त्री की दोहरी निष्ठा। हिन्दी की कोख से जन्मी वह भाषाएँ जिनकी लिपि और वर्तनी देवनागरी है हिन्दी भाषी समाज को एकनिष्ठ नहीं होने दे रही और  दोहरी निष्ठा लेकर प्रतिष्ठा की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती ...हिन्दी भाषी समाज की दोहरी निष्ठा हैं ...भोजपुरी समाज अलग है ...कुमायूनी अलग ...गढ़वाली अलग ...बृजभाषी अलग हैं ..अवधी अलग ...बुन्देलखंडी अलग ...  रूहेलखंडी अलग ...हम विखंडन की प्रवृत्तियों के खण्डित निष्ठा वाले लोगों को साथ ले कर भला अखण्ड भारत अखण्ड समाज की कल्पना भला कैसे कर सकते हैं ? निष्ठा के प्रश्न पर खण्डित लोगों को ले कर अखंडता का पाखण्ड ? ....हिन्दी को आज सबसे बड़ा ख़तरा हिन्दी के बहिरुत्त्पाद जैसी विकसित हुयी भोजपुरी, कुमायूनी, गढ़वाली, बृजभाषा, बुन्देलखंडी,रुहेलखंडी, अवधी भाषाओं और इन भाषाओं के प्रति निष्ठा रखने वाले समाज से है  ...निजी प्रतिष्ठा के लिए ...भारत की प्रतिष्ठा के लिए ...हिन्दी की प्रतिष्ठा के लिए हमें एकनिष्ठ होना ही पडेगा ...दोहरी निष्ठा किसी एक के साथ छल है ...दोहरी निष्ठा लेकर प्रतिष्ठा की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती .
" -----राजीव चतुर्वेदी


Sunday, May 12, 2013

हर उस स्त्री को प्रणाम जिसके मन में ममता है


"गर यह युग पूछ सकता तो पूछता कर्ण की माँ से माँ बनने का सबब ... अगर यह युग पूछ सकता तो पूछता मरियम से माँ बनने का सबब ... अगर यह युग पूछ सकता तो पूछता फातिमा से माँ बनने का सबब ...आज भी बहुत सी लडकियां माँ तो बनती हैं पर लोकलाज के कारण यह सच छिपाने को अभिशिप्त हैं ...हमारी संस्कृति में "ममता" नारी स्वभाव है ...गुण है ...विशेषण है ... तभी तो लोग अपनी कुमारी बेटियों का नाम भी ममता रखते हैं ...लेकिन सभ्य समाज में भी किसी स्त्री के "माँ" बनने का लाईसेंस समाज जारी करता है ...ममता वह रिश्ता है जिसके लिए विवाह नहीं निर्वाह जरूरी है ...हर उस स्त्री को प्रणाम जिसके मन में सभ्यता,सृजन और संस्कृति के प्रति ममता है .
      तमाम तरह के वैज्ञानिकों को एक जगह इकट्ठा कर दें . उनको चोकर /भूसा /बरसीम और जो कुछ मांगें वह भी दे दें पर वह दूध नहीं बना सकते क्योकि इस सब के अलावा दूध बनाने के लिए चाहिए ममता का रसायन जो सिंथेटिक नहीं होता ...वह कहाँ से लाओगे ?"
        यह वनस्पति की ममता है कि अन्न हो रहा है ...यह गाय /भेंस /बकरी आदि की ममता है कि दूध हो रहा है ...यह मुर्गी की ममता है जिसे अण्डा आप खा रहे हैं ...ममता नहीं होगी तो यह सभ्यता भूखी कुपोषित ही मर जायेगी --- प्रकृति में माँ की प्राकृतिक भूमिका और ममता को प्रणाम ...गौर से देखो धरा,धरणी , प्रकृति, बेटी ,पत्नी ,प्रेमिका ,महिला मित्र सभी में ममता है ...ममता स्त्री का आवश्यक और अपरिहार्य प्राकृतिक गुण है ....सभी प्रकार की प्राकृतिक ममता को प्रणाम !!
" ---- राजीव चतुर्वेदी


Tuesday, May 7, 2013

अँधेरे अकादमी पुरुष्कार देने के लिए चमगादड़ की तलाश में हैं

"आश्वस्त रहो
अँधेरे अकादमी पुरुष्कार देने के लिए चमगादड़ की तलाश में हैं
बंद कर दो सभ्यता की सभी खिड़की झरोखे और रोशनदान
सूरज की सूरत से नफरत है इन्हें
सूर्य के संकोच से कुछ तितलियाँ दहशतजदा हैं
और तुम भी जानते हो --
रोशनी बिजली के बिल की हो या दिल की
कीमत तो चुकानी है
यह दौर ऐसा है यहाँ हर रोशनी बिकती है बाजारों में
हर उजाला तिरष्कृत है
हर अँधेरा पुरष्कृत है
हर विकृति चमत्कृत है
चमगादड़ की चर्चा सुन कर सूरज सुबक-सुबक कर सो जाता है
सच की सरकारी ड्योढी को शाम ढले क्या हो जाता है
सहमी सी हर लालटेन को आंधी भी औकात बताती गुजर रही है
चमगादड़ के मानक कितने भ्रामक होंगे
किन्तु अन्धेरा अधिकारों का सृजन कर रहा
चमगादड़ के चालीसे पढ़ती तितली क्यों तुतलाती सी है ?
"

-----राजीव चतुर्वेदी

च्यवनप्राश बहुत मँहगा है

"च्यवनप्राश बहुत मँहगा है
माँ , मेरे पास अब कुछ भी नहीं
सिवा तेरे दिए दीर्घायु होने के आशीर्वाद के
वह दठोना तो कब का मिट गया
जो तैने लोगों की बुरी नज़र न लगने के लिए लगाया था
तेरे रहने तक मैं दीर्घायु नहीं होना चाहता था
अब मेरा छोटा सा बेटा है
मैं चाहता हूँ वह दीर्घायु हो
पर च्यवनप्राश बहुत महगा है
बाहर चल रही हैं विषैली हवाएं
दवाएं बहुत महगी हैं
दुआएं मिलती नहीं बाज़ार में
इस गंदी दुनियाँ में गुजारा कर लिया मैंने
अब गुजर जाऊं तो अफ़सोस मत करना
तुम्हें फिर भी दीर्घायु होना है
क्योंकि दवाएं नकली ,दुआएँ फर्जी
और च्यवनप्राश बहुत मँहगा है .
" -----राजीव चतुर्वेदी

Friday, May 3, 2013

वैश्यालय का कुटीर उद्योग है Live in Relationship

"लिव इन रिलेशनशिप पर वीभत्स सी बहस चल पडी है ...Live in Relationship Vs. Dye in Relationship . Live in Relationship की परिणिति पुरुषों के लिए छिनरफंद की आज़ादी और महिलाओं का Sexual Apparatus में बदल जाना ही है और जब महिला मनुष्य नहीं महज Sexual Apparatus हो जायेगी तो उसका यानी मशीन का Depreciation यानी अवमूल्यन तो होगा ही . यही नहीं हम कालान्तर में बेटी /बहन /माँ /भाभी जैसे एक महिला के बहुरंगी रिश्ते भी खो देंगे ...एक दिन वह भी आयेगा जब Charted Plane /Charted Taxi की ही तरह Charted Sexual Apparatus होंगे . Animal Sex का दौर शुरू होगा ...महिला और पुरुष जब तक Sexual Apparatus की कार्यकुशल मशीन होंगे तभी तक अर्थ रखेंगे वरना व्यर्थ हो जायेंगे ...चूंकि धन पर अभी पुरुष आधिपत्य है अतः प्रौढ़ /बूढ़ी महिलायें वक्त के कूड़ेदान में डाल दी जायेंगी ...स्त्री का सामाजिक/ आर्थिक अवमूल्यन होगा जिसमें 40 वर्ष से ऊपर की महिला घटी दर पर, 50 वर्ष के ऊपर की महिला फटी दर पर और 60 साल के ऊपर की महिला दरबदर हो कर दर -दर की ठोकर खायेगी ...जवान महिला अगर बीमार हुयी तो लाबारिश हो जायेगी ...बृद्धाअवस्था आश्रमों में भीड़ लग जायेगी ...परिवार संस्थाएं टूट जायेंगी ...वैश्यालय का कुटीर उद्योग है Live in Relationship ." -----राजीव चतुर्वेदी