" ज्ञान की वैदिक धारा के प्रारम्भिक दौर में समझदार लोगों ने आगाह किया था कि ज्ञान "कुपात्र" को नहीं देना चाहिए किन्तु ज्ञान की गंगा में नाले गटर गिरते गए और प्रदूषण होता गया . उदाहरण देखिये तुलसी रामायण की कुपड्डढी व्याख्या से कैसे अर्थ का अनर्थ हो गया --
"ढोल गंवार शूद्र पशु नारी,
सकल ताड़ना के अधिकारी ."
( सकल = Gross , ताड़ना =Assessment )
"Drum Rustic Down Trodden Women ---They all deserve gross assessment ."
तुलसी दास जी संस्कृति के महान विद्वान् थे . उन्होंने उर्दू का कोई शब्द उपयोग में नहीं लाया तब "सकल यानी शक्ल " को क्यों उपयोग में लाते ? संस्कृति के महान विद्वान् को विकृत के दुर्दांत शैतानो ने किस तरीके से समझा डाला कि अर्थ का अनर्थ हो गया . समझाया गया कि तुलसी दास जी ने कहा है --- ."ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना यानी शक्ल देखते ही प्रताड़ित किये जाने के अधिकारी हैं ." जब कि तुलसी दास जी इनकी सकल ताड़ना यानी कुल भावनात्मक मूल्यांकन /समीक्षा यानी gross assessment की बात कर रहे हैं . ज्ञान कुपात्र के कान में जाता है तो जुबान से विष वमन और दिमाग से वैचारिक गबन होता है ...दृष्टांत यदि दुष्ट के कान में चला जाए तो दुष्टान्त हो जाता है ." -----राजीव चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment