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छोटे लोगों की बड़ी महत्वाकांक्षाओं का परिणाम हैं छोटे राज्य . एक सरदार
पटेल थे जिन्होंने लगभग आधा हजार छोटे राज्यों का विलय कर भारत संघ यानी
Union of India बनाया ...वर्तमान भारत राष्ट्र के स्वरुप को साकार किया .
फिर समय बीता ...देश में देश की व्यापकता के अनुपात में छोटे नेता आये जो
राज्यों में आपने राजनीतिक कद के अनुसार समायोजित होते चले गए ...फिर उससे
भी छोटे नेता आये ...वह बौने थे ...उनका कद छोटा था ...बड़े राज्य के फ्रेम
में उनकी तश्वीर छोटी पड़ती थी सो उन्होंने अपना कद बढाने की कवायद करने से
इसे बेहतर समझा कि राज्य को छोटा किया जाए ...तश्वीर बड़ी नहीं है तो फ्रेम
को छोटा किया जाए ...और छोटे -छोटे राज्य बनने लगे ...क्या कोई सोरेन
,मुंडा , जोगी ,रमन सिंह,निशंक ,कोशियारी कभी किसी बड़े राज्य का
मुख्यमंत्री बन सकता था ? --- नहीं ...कभी नहीं ....इनका कद इतना बड़ा नहीं
था सो किसी प्रदेश से एक या दो मंडल काट कर एक छोटा राज्य बना कर वहाँ किसी
छोटे नेता को मुख्यमंत्री बना दिया गया और छुटभैये नेता की ...बौने नेता
की बड़ी महत्वाकांक्षा पूरी हुयी ...यह अलगावबाद
कहाँ ले जा रहा है ? ...विखंडन की यह प्रक्रिया कहाँ रुकेगी ? आज छोटे
प्रदेश मांगे जा रहे हैं कल छोटे देश की माँग होगी ? यह विखंडन की मानसिकता
है ...राष्ट्र को खंडित करने की मानसिकता ...उत्तर प्रदेश से कट कर बने
प्रदेश के नए नाम "उत्तरांचल" से विखंडन की मानसिकता के लोगों का अहंकार
तुष्ट नहीं हुआ उन्हें तब संतोष हुआ जब इसका नाम पुनः परिवर्तित कर
"उत्तराखण्ड" कर दिया गया . इसमें खण्डित करने की मंशा व्यक्त जो होती थी
...कल जम्मू से कश्मीर अलग करने की बात उठेगी तब उसे किस तर्क से रोकोगे ?
बोडोलैंड की बात किस तर्क से रोकोगे ? फिर आबादी के अनुपात में बर्बादी
करने की क्षमता की धौंस दे कर मुस्लिम बहुल इलाके अपने अलग -अलग राज्य
मांगेंगे तब किस तर्क से रोकोगे ? ...यह आसान किश्तों में राष्ट्र तोड़ा जा
रहा है ...सरदार पटेल का भारत संघ का सपना तोड़ा जा रहा है ...आप विराट
राष्ट्र के अथक प्रयास के साथ हैं या प्रथक प्रयासों के साथ है ? सावधान,
देश के जो लोग साथ नहीं चल सकते वह प्रथक हो कर प्रथकतावादी आन्दोलन चलाते
है ...यह बौने लोगों की बड़ी महत्वाकान्क्षाओं का प्रतिफल है ...आज बड़े
प्रदेश से पृथक होंगे ...कल बड़े देश से पृथक होंगे ...हमें पृथक नहीं अथक
लोगों की जरूरत है ...राष्ट्र स्थापित होने की प्रक्रिया पूरी होने से पहले
ही टूट रहा है ...आसान किश्तों में ...नागरिकता के रिश्तों में ." ------
राजीव चतुर्वेदी
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