Wednesday, October 16, 2013

अल्लाह की आँख में धूल मत झोंक लल्ला !! ईद -उल-जुहा मुबारक !!

" ल्लाह की आँख में धूल मत झोंक लल्ला .कुर्बानी का मतलब है किसी अपने अजीज की कुर्बानी . यह क्या हुआ कि शाम को बकरी खरीदी और सुबह काट डाली और चिल्लाने लगे कुर्बानी ...कुर्बानी ... दरअसल कुर्बानी तो बकरी देती है ...अपनी जान की कुर्बानी और आप उसका गोस्त खा कर जश्न मना कर चिल्लाते हो कुर्बानी ...आपने कौन सी कुर्बानी दी है ? ...यह बकरी की कुर्बानी नहीं उस मासूम शान्तिप्रिय शाकाहारी विवश जानवर के साथ विश्वासघात है ...और अगर इसे कुर्बानी कहते हैं ...और अगर इस कुर्बानी से सबब मिलता है ...अल्लाह खुश होता है ...तो इज़राइल और अमेरिका तो तुम्हारी चुन -चुन कर कुर्बानी देते हैं ....जैसे तुम मासूम अहिंसक बकरी /ऊँट /भेड़ का क़त्ल करते हो और कहते हो कुर्बानी वैसी तो कुर्बानी इज़राइल और अमेरिका अक्सर करते हैं ...उनको भी इस कथित कुर्बानी का सबब मिलता होगा तभी तो यह देश फल-फूल रहे हैं, सरसब्ज हैं, खुशहाल हैं, बरक्कत कर रहे हैं . खुदा की आँख में धूल झोंकने वालो खुद से पूछो किस अज़ीज की कुर्बानी दी है ...दीन के लिए क्या कुर्बानी दी है ?...ईमान के लिए क्या कुर्बानी दी है ? 

"झूठ झटके का था इसलिए नहीं खाया उसने,
सच को उसने सचमुच हलाल कर डाला ."
!! ईद -उल-जुहा मुबारक !! " ----- राजीव चतुर्वेदी


Saturday, September 28, 2013

आओ कुछ ख्वाब खरीदें उसी मण्डी से

" आओ कुछ ख्वाब खरीदें उसी मण्डी से
जहाँ हम बिक रहे हैं रोज टुकड़ों में
कहो, कैसा लगा यह सत्य सुन कर ?
शाम का सूरज अस्त होता है पराजित सा
रात को जब चांदनी चर्चा करेगी
तो उसमें तुम्हारी वेदना भी गुमशुदा होगी
ये रंगीन रातें उनकी हैं और ग़मगीन सुबह तुम्हारी है
सुना है ये धरती घूमती है
तो धरती के सभी सिद्धांत भी तो घूमते होंगे
इस घूमते भूगोल के अक्षांश से पूछो
हमारी वेदना की व्याख्या
जिन्दगी की भूमध्य रेखा से और कितनी दूर तक फ़ैली हुयी है 
और हर देशांतर का टापू एक मण्डी सा सजा है
देह से ले कर वहाँ पर स्नेह बिकता है --- खरीदोगे ?
चले आओ
आओ कुछ ख्वाब खरीदें उसी मण्डी से
जहाँ हम बिक रहे हैं रोज टुकड़ों में
कहो, कैसा लगा यह सत्य सुन कर ?"
  ---- राजीव चतुर्वेदी

Thursday, September 5, 2013

उस मोहल्ले के कुत्ते शान्ति पर बहुत भोंकते हैं

" उस मोहल्ले के कुत्ते शान्ति पर बहुत भोंकते हैं
आज कुछ कुत्तों ने शान्ति को काट लिया
मुकदमा चला
शान्ति से कुत्तों के वकीलों ने लम्बी जिरह की
यह कि कुत्तों का भोंकना तो उनका अभिव्यक्ति का अधिकार है 
और कुत्तों की मजहबी आस्था को ठेस पहुंचाने पर वह काट भी सकते हैं
संवैधानिक सा असंवैधानिक सवाल यह भी था
कि शान्ति किसने पहले भंग की ?
 काटने वालों ने या काटे जाने पर चीखने वालों ने ?"
---- राजीव चतुर्वेदी

Wednesday, August 14, 2013

खाद्य सुरक्षा बिल-- देश की भूख में वोट नहीं तलाशिये


"Food Security Bill यानी खाद्य सुरक्षा बिल ...अच्छा झुनझुना है ...पेप्सी की तरह देश को पिलाया जा रहा है जिससे पोषण कुछ भी नहीं डकार जोरदार आ रही है ...वह यही चाहते हैं ...वह चाहते हैं आप भूखे न मरें क्योंकि भूखा मरता आदमी विद्रोह कर देता है ...वह यह भी नहीं चाहते कि आप भरे पेट हों क्योंकि भरे पेट आदमी अपने अधिकार, नीति, सिद्धांत, राष्ट्रवाद की बात करता है ...वह चाहते हैं कि आप भूख से पूरी तरह नहीं मरें थोड़े से ज़िंदा भी रहें ताकि उन्हें वोट दे सकें ...वह चाहते हैं आप अधमरे रहें ...अधमरा कुपोषित नागरिक राशन की दुकान या वोटर की कतार में कातर सा खड़ा पाया जाता है आन्दोलन नहीं करता . उसे अखबार की ख़बरें नहीं अखरतीं ...उसे दूरदर्शन पर राष्ट्रीय दर्द नहीं देखना ...वह जब कभी दूरदर्शन देखने का जुगाड़ कर पाता है तो अपनी जिन्दगी में कुछ समय को ही सही कुछ सुखद कल्पनाएँ आयात कर लेता है ...उसे रूपये का अवमूल्यन, पेट्रोल की कीमत , टेक्स की दरें, शिक्षा का मंहगा होना, फ्लेट का मंहगा होना, घोटाले या रोबर्ट्स बढेरा जैसों का समृद्धि का समाज शास्त्र प्रभावित नहीं करता ...वह यही चाहते है इसीलिए वह चाहते हैं भूखे पेट कुपोषित अधमरा आदमी जो महज वोटर हो नागरिक नहीं . अगर खाद्य सुरक्षा ही देनी है तो नौ साल गुजर गए इस गए गुजरे मनमोहन की सरकार को क्या कृषि को लाभकारी बनाने की कोई योजना आयी ? खेतों में अन्न की जगह अब प्लौट उग रहे हैं इस विनाश को नगर विकास बताते तुगलको जब आबादी बढ़ेगी और खेत कम हो जायेगे तो कैसे पेट भरेगा ...तब कृषि उत्पाद महगे तो होंगे पर किसान के यहाँ नहीं आढ़ततिये के गोदाम पर और मालदार आदमी वह खरीद लेगा गरीब फिर भूखा मरेगा ...जैसे गाय /भैंस का दूध उसके बच्चे से ज्यादा हमारे बच्चे पीते हैं ...गाँव के बच्चों से ज्यादा शहर के बच्चे घी /मख्खन खाते है ...वह यही चाहते हैं . --- देश की भूख में वोट नहीं तलाशिये कृषि को लाभकारी बनाइये ...यह आपके राहुल, आपकी प्रियंकाएं या प्रियंकाओं के रोबर्ट्स केवल अपना पेट भरते हैं ...देश का पेट तो किसान भरता है ---उसके लिए क्या किया ?" ---- राजीव चतुर्वेदी


Monday, August 12, 2013

तुम्हारी लम्बी सी जिन्दगी में

"तुम्हारी लम्बी सी जिन्दगी में
मेरा छोटा सा हस्ताक्षर
मिट गया होगा
कदाचित अपनी श्याही में या फिर तनहाई में सिमट गया होगा
वेदना मुझको नहीं
संवेदना तुमको नहीं
फिर शोर कैसा है ?
शायद हमारे बीच जो बहती नदी थी
बाढ़ आयी है उसी में
और दूरी बढ़ गयी है बाढ़ में हमारे किनारों की

हमारी खामोशियों के बीच बहती हवाओं में कुछ पत्ते खड़खडाते हैं
वह अपनी वेदना कहते हैं
हमारी बात जैसी है
गुजर गए दिन की जैसी है
गुजरती रात जैसी है
तुम्हारी लम्बी सी जिन्दगी में
मेरा छोटा सा हस्ताक्षर
मिट गया होगा
कदाचित अपनी श्याही में या फिर तनहाई में सिमट गया होगा
क्या कहूँ ?
तेरी खामोशी भी मुझको खूबसूरत सी लगती है .
" ---- राजीव चतुर्वेदी

Friday, August 9, 2013

जिस दिन चार्ली चैपलिन को देख कर तुम हँसे थे


" जिस दिन चार्ली चैपलिन को देख कर तुम हँसे थे
मेरी नज़र से गिर गए थे
वह फुटपाथ पर लावारिश नवजात शिशु था
तुम उस पर हँसे थे
वह अनाथालय में पला बड़ा एक कमजोर कुपोषित बच्चा था
तुम उस पर हँसे थे
उसके पैरों में पोलियो हो गया था
तुम उसकी चाल देख कर हँसे थे 
तुमने कभी उसकी कविता पढी ?....पढ़ना
" One murder makes a villain
Hundred a hero
Numbers sanctify." --- Charlie Chaplin 
यानी  --" एक हत्या खलनायक बनाती है
और अनेक हत्याएं नायक
यह संख्या है जो आचरण को पवित्र करती है ."
यह  गंभीर बात है चार्ली चैपलिन की तरह
किन्तु तुम्हें सदैव उसमें एक जोकर दिखाई दिया
शायद तुम्हारा असली प्रतिविम्ब
जिसकी अब तक तुम शिनाख्त नहीं कर सके
कुछ लोग गंभीर चीजों को मजाक में लेते है
और मजाक को गंभीरता में
सच की शहादत में चार्ली चैपलिन मर चुका है
तुम्हारी आदत में ज़िंदा है
तभी तो तुम हँस रहे हो
क्योंकि दरअसल रोना चाहते हो .
" ---- राजीव चतुर्वेदी     

Wednesday, August 7, 2013

अन्न के उत्पादक से ज्यादा प्रतिष्ठित हैं असलहे के उत्पादक

"  जो लोग जिन्दगी के पूर्वार्ध में
अपने गाँव में
कट्टा बनाने का कुटीर उद्योग चलाते थे
खो गए कहीं
 जो लोग जिन्दगी के उत्तरार्ध में
मिसाइल बनाते हैं
याद किये जाते हैं
शोहरत बड़े गुनाह को पनाह देती है
अन्न के उत्पादक से ज्यादा प्रतिष्ठित हैं असलहे के उत्पादक
 और ऐसी दुनियाँ में
किसी किसान के यहाँ जन्म लेकर बड़ा होना
कोई आसान काम नहीं था
फिर भी मैं बड़ा हुआ
मैं जानता था
सृजन की क्षमता पर विध्वंश भारी है
हर भगवान् असलहाधारी है
मैं छोटा आदमी था
मैंने छोटे गुनाह किये
वह बड़ा आदमी था उसने बड़े गुनाह किये
आदतें नहीं बदली
आचरण नहीं बदले
पर व्याकरण हर बार बदले
किसी ने मुझे शिक्षा के असलहे से नौकरशाह बन कर लूटा
जो कानूनविद थे उन्होंने कानूनी असलहे से लूटा
डॉक्टर ने ज्ञान के असलहे से लूटा
वैज्ञानिक ने विज्ञान के असलहे से लूटा
व्यापारी ने तराजू से लूटा
मैं तो कट्टे वाला था
लुटे -पिटों से लूटता भी क्या ?           
शोहरत बड़े गुनाह को पनाह देती है
अन्न के उत्पादक से ज्यादा प्रतिष्ठित हैं असलहे के उत्पादक
 और ऐसी दुनियाँ में
किसी किसान के यहाँ जन्म लेकर बड़ा होना
कोई आसान काम नहीं था
फिर भी मैं बड़ा हुआ .
" ----- राजीव चतुर्वेदी

Sunday, August 4, 2013

इसके लिए जरूरी है कार से मरना

" सिद्धांतों वेदान्तों की बातें मुझको क्या मालुम ?
मैं राशन की कतार की आख़िरी इकाई हूँ
मुझे हर वह व्यक्ति अभिजात्य लगता है
जो हाजमोला खरीदता है
मैं जानता हूँ भूख
धरती के पेट की हो
या
मेरे पेट की
ज्वालामुखी की तरह फटती है
और हवा में दूर तलक उछल जाते हैं कुछ शोले और ढेरों पत्त्थर
जल्दी ही एक आवारा पत्थर
तुम्हारी और आयेगा
पर तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा
बस
तुम्हारी कार का शीशा टूट जाएगा
तुम्हारा तो बीमा है
क्या भूख से मरने का भी कोई बीमा होता है ?
या
मेरे बच्चों को मेरे मरने के बाद ही कुछ मिल जाए
इसके लिए जरूरी है कार से मरना
कार से मरने वाले पर फर्क क्या पड़ता है
कि वह चलाते हुए मरा या चलते हुए ?
" ----- राजीव चतुर्वेदी     

Wednesday, July 31, 2013

छोटे लोगों की बड़ी महत्वाकांक्षाओं का परिणाम हैं छोटे राज्य



" छोटे लोगों की बड़ी महत्वाकांक्षाओं का परिणाम हैं छोटे राज्य . एक सरदार पटेल थे जिन्होंने लगभग आधा हजार छोटे राज्यों का विलय कर भारत संघ यानी Union of India बनाया ...वर्तमान भारत राष्ट्र के स्वरुप को साकार किया . फिर समय बीता ...देश में देश की व्यापकता के अनुपात में छोटे नेता आये जो राज्यों में आपने राजनीतिक कद के अनुसार समायोजित होते चले गए ...फिर उससे भी छोटे नेता आये ...वह बौने थे ...उनका कद छोटा था ...बड़े राज्य के फ्रेम में उनकी तश्वीर छोटी पड़ती थी सो उन्होंने अपना कद बढाने की कवायद करने से इसे बेहतर समझा कि राज्य को छोटा किया जाए ...तश्वीर बड़ी नहीं है तो फ्रेम को छोटा किया जाए ...और छोटे -छोटे राज्य बनने लगे ...क्या कोई सोरेन ,मुंडा , जोगी ,रमन सिंह,निशंक ,कोशियारी कभी किसी बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बन सकता था ? --- नहीं ...कभी नहीं ....इनका कद इतना बड़ा नहीं था सो किसी प्रदेश से एक या दो मंडल काट कर एक छोटा राज्य बना कर वहाँ किसी छोटे नेता को मुख्यमंत्री बना दिया गया और छुटभैये नेता की ...बौने नेता की बड़ी महत्वाकांक्षा पूरी हुयी ...यह अलगावबाद कहाँ ले जा रहा है ? ...विखंडन की यह प्रक्रिया कहाँ रुकेगी ? आज छोटे प्रदेश मांगे जा रहे हैं कल छोटे देश की माँग होगी ? यह विखंडन की मानसिकता है ...राष्ट्र को खंडित करने की मानसिकता ...उत्तर प्रदेश से कट कर बने प्रदेश के नए नाम "उत्तरांचल" से विखंडन की मानसिकता के लोगों का अहंकार तुष्ट नहीं हुआ उन्हें तब संतोष हुआ जब इसका नाम पुनः परिवर्तित कर "उत्तराखण्ड" कर दिया गया . इसमें खण्डित करने की मंशा व्यक्त जो होती थी ...कल जम्मू से कश्मीर अलग करने की बात उठेगी तब उसे किस तर्क से रोकोगे ? बोडोलैंड की बात किस तर्क से रोकोगे ? फिर आबादी के अनुपात में बर्बादी करने की क्षमता की धौंस दे कर मुस्लिम बहुल इलाके अपने अलग -अलग राज्य मांगेंगे तब किस तर्क से रोकोगे ? ...यह आसान किश्तों में राष्ट्र तोड़ा जा रहा है ...सरदार पटेल का भारत संघ का सपना तोड़ा जा रहा है ...आप विराट राष्ट्र के अथक प्रयास के साथ हैं या प्रथक प्रयासों के साथ है ? सावधान, देश के जो लोग साथ नहीं चल सकते वह प्रथक हो कर प्रथकतावादी आन्दोलन चलाते है ...यह बौने लोगों की बड़ी महत्वाकान्क्षाओं का प्रतिफल है ...आज बड़े प्रदेश से पृथक होंगे ...कल बड़े देश से पृथक होंगे ...हमें पृथक नहीं अथक लोगों की जरूरत है ...राष्ट्र स्थापित होने की प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही टूट रहा है ...आसान किश्तों में ...नागरिकता के रिश्तों में ." ------ राजीव चतुर्वेदी


Sunday, July 28, 2013

जिन्दगी पैर नहीं तो पहियों पर भी चल ही लेती है




" जिन्दगी पैर नहीं तो पहियों पर भी चल ही लेती है ,
खुदा खुदगर्ज था हम जिन्दगी को तनहा तलाशने निकले .
"

--- राजीव चतुर्वेदी