Tuesday, April 30, 2013

क्रान्ति का तेरा करिश्मा झूठ का सारांश था

"क्रान्ति का तेरा करिश्मा झूठ का सारांश था
तुमने जब दीवारें ढहा दीं तो छत कहाँ बाकी बची ,
वक्त की वहशी हवाएं और सर पर आसमाँ 
भूख तेरी, खेत मेरे , आढ़तें आज भी उनकी
तुमने खेतों में कॉलोनी बसा दी, रोटी कहाँ बाकी बची .
जब कभी हैरत से वह देखने लगता है तेरी समृद्धि को
तो समझ लेना क़ि उसमें गैरत कहाँ बाकी बची
." ----राजीव चतुर्वेदी

Sunday, April 28, 2013

चीख तिरष्कृतों का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है

"आज चीखने का मन कर रहा है
मैं चीखना चाहता हूँ शहर की सबसे ऊंची इमारत पर चढ़ कर
मैं चीखना चाहता हूँ इस दौर की सबसे गहरी खाई में उतर कर
मैं चीखना चाहता हूँ सन्नाटे में आहट बन कर
संसद हो या सर्वोच्च न्यायलय या समाचार
सभी में लोग सुबकते हैं चीखते क्यों नहीं ?
मैं चीखूंगा तुम्हारे शालीन सहमे से मौन पर चस्पा इबारत की तरह
मैं चीखूंगा इसलिए कि
चीख पुरुष्कृतों  की आत्ममुग्ध बस्ती में
तिरष्कृतों का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है .
"------  राजीव चतुर्वेदी

Wednesday, April 24, 2013

मेरे लेखन का मूल्यांकन साहित्य अकादमी नहीं सिसमोग्राफ करेगा

"मेरे लेखन का मूल्यांकन
साहित्य अकादमी नहीं
सिसमोग्राफ करेगा
और एक दिन नापी जायेगी उसकी तीव्रता
रिक्टर स्केल पर
भूगर्भ के सन्दर्भ साहित्य में स्वीकार कर लेना
धरती और शब्द जब करवट बदलते हैं
तो एक सभ्यता सहम जाती है
और ढह चुकी सभ्यता के मलवे में फूटती हैं नयी कोंपल
भूगर्भ के सन्दर्भ साहित्य में स्वीकार कर लेना
मेरे लेखन का मूल्यांकन
साहित्य अकादमी नहीं
सिसमोग्राफ करेगा
और एक दिन नापी जायेगी उसकी तीव्रता
रिक्टर स्केल पर .
" -----राजीव चतुर्वेदी

Tuesday, April 23, 2013

कहाँ गए कामोद्दीपन करने वाले कमीने ?


"कहाँ गए कामोद्दीपन करने वाले कमीने ...यह सेक्स की संस्कृति और उसकी विकृति बेचते मुम्बई के फ़िल्मी रंडी -भडुए ...भोजन से कुपोषित समाज का कामोद्दीपन करके देह बाजार का जो व्यापार अश्लीलता परोसती मुम्बईया फ़िल्मी संस्कृति ने किया है ...अश्लील गानों के बाजार में परोक्ष सेक्स बेचने बाले यह रंडी -भडुएनुमा गायक ... भोजपुरी के टेम्पू /ऑटो /बसों में बजते अश्लील गाने समाज में कामोद्दीपन करने में सफल हुए परिणाम फ़िल्में हाउसफुल हुयी ...देह व्यापार के अड्डे गुलजार हुए ...गानों की सीडी खूब बिकीं और समाज में कामुकता की भूख अन्तुलन की हद तक प्रचण्ड हो गयी ...भाषाएँ ही नहीं परिभाषाये भी क्रय क्षमता के अनुसार रातों रात बदल गयीं देखिये --- गाँव के जमींदार के यहाँ शादी में पांच हजार ले कर जो नाचे वह "रंडी" और दुबई में दाउद के यहाँ शादी में पचास लाख ले कर नाचे वह भारत की सांस्कृतिक राजदूत ऐश्वर्य राय . कामोद्दीपन से फिल्मों के ग्राहक बढे, अश्लील गानों के एलबम के ग्राहक बढे, कॉल गर्ल्स के ग्राहक बढे, देह व्यापार के अड्डों के ग्राहक बढे, शराब शबाब के ग्राहक बढे , कंडोम और उत्तेजक दवाओं के ग्राहक बढे ...इन धंधों से जुड़े लोग रातों रात मालदार होगये ...मालदारों पर फर्क नहीं पडा ...मध्यमवर्ग गरीब होने लगा ...और गरीब गुनाह करने लगा ...बच्चियों पर होते बलात्कार की घटनाओं पर गौर करें --- भुक्तभोगी भी गरीब या निम्नमध्यम वर्ग से हैं और अभियुक्त भी गरीब या निम्न माध्यम वर्ग से हैं ...जो वर्ग सेक्स खरीद नहीं सकता वह सेक्स की लूट /डकैती /राहजनी कर रहा है ...देश की कृषि और ऋषि परम्परा की संस्कृति देह व्यापार के विकृत बाजार में बदल दी गयी है ...पहले वातावरण में गूंजता था ॐ , अब गूंजता है कन्डोम ...कमीनो ने कामोद्दीपन करके कहाँ ला दिया ...अब हमारी बेटियाँ असुरक्षित हैं ...अब जो सेक्स खरीद नहीं सकता वह सेक्स की राहजनी कर रहा है ." -----राजीव चतुर्वेदी    

आखिर "नेता" की परिभाषा क्या है ?

"नेता" किसे कहा जाए ? आखिर "नेता" की परिभाषा क्या है ? नेता शब्द संस्कृति से आया है "नेता" वह जो नयन व्यापार करे यानी किसी चिन्हित लक्ष्य तक ले जाने का काम करे . Some time "actual meaning" of a word is different than the "notional meaning" . "Leader" is also one of the same . यहाँ "संगठन" और "गिरोह" के अंतर को भी समझना जरूरी है . संगठन सिद्धांतनिष्ठ होता है और गिरोह व्यक्तिनिष्ठ . नेता या Leader वह व्यक्ति होता है जो उस संदर्भगत तात्कालिक समाज को ऊष्मा का सुचालक बना कर अपने द्वारा लागू सांगठनिक अनुशाशन का अनुपालन करने को प्रेरित कर पालन भी करवाए . नेता वह व्यक्ति इकाई है जिस पर किसी चिन्हित उद्देश्य या विश्वास को लेकर अन्य बिखरी हुयी व्यक्ति इकाईयां आलाम्बित और घनीभूत (polarize ) होती हैं . नेता संगठन और संगठन के विघटन का कारक तत्व होता है पर गिरोह का नहीं . गिरोह में नेता नहीं होता सरगना होता है . आज कल प्रायः सभी राजनीतिक दल "संगठन" नहीं "गिरोह" है क्योंकि संगठन सिद्धांतनिष्ठ होता है और गिरोह व्यक्तिनिष्ठ ." -----राजीव चतुर्वेदी

Monday, April 22, 2013

मैं अंगारे सिरहाने रख कर सोया था

"चिंगारी चीखती है, मैं अंगारे सिरहाने रख कर सोया था ,
देश जब जलता हो तो सपने नहीं सदमें ही आते हैं .
"
-----राजीव चतुर्वेदी

तुम कविता में तुकबन्दी के माहिर हो

"तुम कविता में तुकबन्दी के माहिर हो ,
मैं तीखे तर्कों से पैगाम दिया करता हूँ
तुम इष्ट साधना को अभीष्ट समझे हो
मैं विवश वेदना को आकार दिया करता हूँ .
"
----राजीव चतुर्वेदी

समय का बहाव है

"समय का बहाव है इस दौर में इतना ही तेज ,
जो जहाँ डूबता है उसका शव वहाँ नहीं मिलता .
"
----राजीव चतुर्वेदी

कब्रिस्तान में...

"कब्रिस्तान में दफ़न होते हैं
ना जाने कितने रिश्ते
ना जाने कितने नाम
ना जाने कितने बदनाम
ना जाने कितने गुमनाम
ना जाने कितनी रंजिशें
ना जाने कितने राग , ना जाने कितने रंग
कब्रिस्तान के पास से गुजरो तो हवा कुछ फुसफुसा कर कहती है
उग आती है कोई याद
और लोहबान की सुगंध ओढ़ कर सोया कोई रिश्ता
मैं आऊँगा एक दिन और सो जाऊंगा चुपचाप
अपनों के बीच में .
" ----राजीव चतुर्वेदी

Sunday, April 21, 2013

देश जब जलता हो तो सपने नहीं सदमें ही आते हैं

"चिंगारी चीखती है, मैं अंगारे सिरहाने रख कर सोया था ,
देश जब जलता हो तो सपने नहीं सदमें ही आते हैं .
"
-----राजीव चतुर्वेदी