Impleadment
This is the assertion of anyone's right to be heard...
Monday, April 22, 2013
मैं अंगारे सिरहाने रख कर सोया था
"
चिंगारी चीखती है, मैं अंगारे सिरहाने रख कर सोया था ,
देश जब जलता हो तो सपने नहीं सदमें ही आते हैं .
"
-----राजीव चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Followers
Blog Archive
►
2014
(6)
►
May
(1)
►
January
(5)
▼
2013
(92)
►
December
(5)
►
October
(1)
►
September
(2)
►
August
(5)
►
July
(7)
►
June
(9)
►
May
(5)
▼
April
(15)
क्रान्ति का तेरा करिश्मा झूठ का सारांश था
चीख तिरष्कृतों का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है
मेरे लेखन का मूल्यांकन साहित्य अकादमी नहीं सिसमोग्...
कहाँ गए कामोद्दीपन करने वाले कमीने ?
आखिर "नेता" की परिभाषा क्या है ?
मैं अंगारे सिरहाने रख कर सोया था
तुम कविता में तुकबन्दी के माहिर हो
समय का बहाव है
कब्रिस्तान में...
देश जब जलता हो तो सपने नहीं सदमें ही आते हैं
अब ज़मीर स्मरण की नहीं संस्मरण की चीज है
बंद लिफ़ाफ़े में खुले ख्वाब कोई छोड़ गया
धर्म को राजनीति का उपकरण बनाने की विभीषिका
परिदृश्यों के बीच गुजरती एक परी सी शब्दों की ---वह...
कुत्तों से करुणा की बातें क्या करना ?
►
March
(12)
►
February
(7)
►
January
(24)
►
2012
(236)
►
December
(20)
►
November
(13)
►
October
(11)
►
September
(12)
►
August
(14)
►
July
(27)
►
June
(16)
►
May
(23)
►
April
(38)
►
March
(29)
►
February
(33)
►
2011
(9)
►
May
(5)
►
March
(3)
►
February
(1)
►
2010
(24)
►
March
(8)
►
February
(8)
►
January
(8)
About Me
Unknown
View my complete profile
No comments:
Post a Comment