"कब्रिस्तान में दफ़न होते हैं
ना जाने कितने रिश्ते
ना जाने कितने नाम
ना जाने कितने बदनाम
ना जाने कितने गुमनाम
ना जाने कितनी रंजिशें
ना जाने कितने राग , ना जाने कितने रंग
कब्रिस्तान के पास से गुजरो तो हवा कुछ फुसफुसा कर कहती है
उग आती है कोई याद
और लोहबान की सुगंध ओढ़ कर सोया कोई रिश्ता
मैं आऊँगा एक दिन और सो जाऊंगा चुपचाप
अपनों के बीच में ." ----राजीव चतुर्वेदी
ना जाने कितने रिश्ते
ना जाने कितने नाम
ना जाने कितने बदनाम
ना जाने कितने गुमनाम
ना जाने कितनी रंजिशें
ना जाने कितने राग , ना जाने कितने रंग
कब्रिस्तान के पास से गुजरो तो हवा कुछ फुसफुसा कर कहती है
उग आती है कोई याद
और लोहबान की सुगंध ओढ़ कर सोया कोई रिश्ता
मैं आऊँगा एक दिन और सो जाऊंगा चुपचाप
अपनों के बीच में ." ----राजीव चतुर्वेदी
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