"कुत्तों से करुणा की बातें क्या करना ?
नालों से वरुणा की बातें क्या करना ?
विषधर की बस्ती में अमृत की बातें क्या करना ?
इन बाजारों में स्नेह नहीं बस देह बिका करती है
इन रंडी -भडुओं से हनुमान की बातें क्या करना ?
गमले के परजीवी से पौधे देवदार से दावानल के हाल कहा करते हैं
गूलर के भुनगों की ख्वाहिश धरती की पैमाइश की है
गूलर के भुनगों के बंधक कोलम्बस के ख्वाब यहाँ रहते हैं
इन गूलर के भुनगों से कोलम्बस की बातें क्या करना ?
जुगनू के जज्वात सूर्य पर अब भारी हैं
भ्रष्टाचारी लोग यहाँ पर सब सरकारी हैं
राजनीति के लोग जहां पर माल भरा करते हैं
सोचा जज तक पहुंचेंगी मेरी फरियादें
पर जज भी तो है सरकारी
पेशकार को घूस जिसे कहते हैं हम पैरोकारी
कुछ जज भी तो खाते हैं उसकी तरकारी
ऐसे इस जज से न्याय की बातें क्या करना ?
पत्रकार प्रवचन देते हैं अखबारों में , कुछ टीवी से भी झांक रहे
सच की सूरत में यह षड्यंत्रों को ही बाँट रहे
यहाँ दलालों ने सच हलाल ही कर डाला
समाचार की हर आढ़त पर सत्य को बिकता मैंने देखा
समाचार की इस दूकान पर सत्य की बातें क्या करना ?
नौकरशाही महाभ्रष्ट है जनता इनसे बहुत त्रस्त है
मंथरा के इन वंशजों से राम की बातें क्या करना ?
कुत्तों से करुणा की बातें क्या करना ?
नालों से वरुणा की बातें क्या करना ?
विषधर की बस्ती में अमृत की बातें क्या करना ?
इन बाजारों में स्नेह नहीं बस देह बिका करती है
इन रंडी -भडुओं से हनुमान की बातें क्या करना ?" -----राजीव चतुर्वेदी
नालों से वरुणा की बातें क्या करना ?
विषधर की बस्ती में अमृत की बातें क्या करना ?
इन बाजारों में स्नेह नहीं बस देह बिका करती है
इन रंडी -भडुओं से हनुमान की बातें क्या करना ?
गमले के परजीवी से पौधे देवदार से दावानल के हाल कहा करते हैं
गूलर के भुनगों की ख्वाहिश धरती की पैमाइश की है
गूलर के भुनगों के बंधक कोलम्बस के ख्वाब यहाँ रहते हैं
इन गूलर के भुनगों से कोलम्बस की बातें क्या करना ?
जुगनू के जज्वात सूर्य पर अब भारी हैं
भ्रष्टाचारी लोग यहाँ पर सब सरकारी हैं
राजनीति के लोग जहां पर माल भरा करते हैं
सोचा जज तक पहुंचेंगी मेरी फरियादें
पर जज भी तो है सरकारी
पेशकार को घूस जिसे कहते हैं हम पैरोकारी
कुछ जज भी तो खाते हैं उसकी तरकारी
ऐसे इस जज से न्याय की बातें क्या करना ?
पत्रकार प्रवचन देते हैं अखबारों में , कुछ टीवी से भी झांक रहे
सच की सूरत में यह षड्यंत्रों को ही बाँट रहे
यहाँ दलालों ने सच हलाल ही कर डाला
समाचार की हर आढ़त पर सत्य को बिकता मैंने देखा
समाचार की इस दूकान पर सत्य की बातें क्या करना ?
नौकरशाही महाभ्रष्ट है जनता इनसे बहुत त्रस्त है
मंथरा के इन वंशजों से राम की बातें क्या करना ?
कुत्तों से करुणा की बातें क्या करना ?
नालों से वरुणा की बातें क्या करना ?
विषधर की बस्ती में अमृत की बातें क्या करना ?
इन बाजारों में स्नेह नहीं बस देह बिका करती है
इन रंडी -भडुओं से हनुमान की बातें क्या करना ?" -----राजीव चतुर्वेदी
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