Monday, January 27, 2014

जब लोकतांत्रिक समुद्र -मंथन होता है तो ? ...

"जब लोकतांत्रिक समुद्र -मंथन होता है तो सुर भी निकलता है , सुंदरियां भी , शौर्य भी , विष भी ,अमृत भी . सवाल यह है कि जन -गण -मन किसका चयन करता है ? सवाल यह है कि सदैव सुविधा की घात में बैठे देवता कौन हैं ? राहू -केतु कौन हैं ? कौन हैं हमारे घावों पर मरहम लगाने वाला महरबान धन्वन्तरी ? कौन है अप्सरा ? अमृत पर कौन है घात में, किसके हाथ में है सुरा ? हम सही पहचान कर सकें ...धोखा न खाएं . हर युग में एक शिव होता है जो समाज के फैले विष को पीता है पर सुकरात की तरह मरता नहीं , जीता है .---- हम उस शिव को पहचान सकें . --- शुभ कामना !!" ---- राजीव चतुर्वेदी

Sunday, January 26, 2014

यह खनक कैसी हुयी ? कुछ गिरा क्या ?

" मैं जिन्दगी मैं दौड़ता जा रहा था
यह खनक कैसी हुयी ?
कुछ गिरा क्या ? ...देखता हूँ ...उठाता हूँ ...
अरे यह आत्मा मेरी गिरी है मुझसे निकल कर
कहती है मुझे आना ही होगा फिर कभी ...आऊँगी भी
नए कपडे पहन कर
तेरा सफ़र रुकता है अब ...मेरा सफ़र जारी हुआ
जिन्दगी की शाम का वक्तव्य है यह ...रात बाकी है
सुबह फिर अर्ध्य देना है तुम्हें उगते हुए सूरज को
और उस उगते हुए सूरज मैं शुभकामना भी शामिल हैं
मेरी भी ...तुम्हारी भी .
" ------ राजीव चतुर्वेदी

Thursday, January 16, 2014

मेरी कविता में ...



"मेरी कविता में चाँद चांदनी घुँघरू पायल घायल नहीं होते
मेरी कविता में रातरानी ,बेला , चिनार या कोई छिनार भी नहीं होते
मेरी कविता में मुम्बैया रण्डी भडुए तबले सारंगी भी नहीं होते
मेरी कविता में रात ढलते ही खौफजदा माएं होती हैं
मेरी कविता में पत्नी की आशाएं होती हैं

मेरी कविता में चन्दा को मुठ्ठी में कैद किये कुछ बच्चे होते हैं
मेरी कविता में सेना के मृत जवान पर परिजन रोते हैं
मेरी कविता में सूरज के साथ उठ खडा किसान होता है
मेरी कविता में अनुदान की कातर कतारें नहीं होतीं
अधिकार माँगता नौजवान होता है
मेरी कविता में शंका कम, समाधान होता है
मेरी कविता में आचरण होता है, आचरण का व्याकरण होता है
मेरी कविता में पर्यावरण होता है और उससे चिंतित तितली होती है
मेरी कविता में नागफनी के फूल, बबूलों के कांटे हैं
मेरी कविता में कुछ सपने भी हैं जो हमने बांटे हैं
मेरी कविता में वेदान्त नहीं, वेदना है
मेरी कविता में तुम्हारा रूप छल पर चढ़ा आवरण है
रूप अगर निश्छल है तो नुमाईश कैसी ?
रूप अगर आखेट का चुगा है तो उसकी भी तो बात हो जिसको तैने ठगा है
मेरी कविता में युद्ध है, कलह नहीं
मेरी कविता में प्रयास है, प्रलय नहीं
मेरी कविता में माँ है , पिता हैं , बहने हैं भाई हैं
दादा हैं दादी हैं स्मृतियाँ हैं
मेरी कविता में यंत्रों की गतियाँ हैं
मेरी कविता में कलकल बहती नदियाँ हैं
मेरी कविता में कलेंडर पर सूली में चढी सदियाँ हैं
मेरी कविता में अनुदान नहीं आन्दोलन हैं
कृपा बटोरने को फैले हुए हाथ नहीं, बंधी हुयी मुट्ठी है
मेरी कविता में उद्योगों की भट्टी है
मेरी कविता में सूना चूल्हा है, दहेजखोर दूल्हा है
मेरी कविता में राग है ,मेरी कविता में आग है
मेरी कविता में टूटते दायरे हैं ...ढहती हुयी दीवार हैं
और वह ईंट भी है जो हर क्रान्ति का आख़िरी हथियार है ."
----- राजीव चतुर्वेदी



शताब्दियों बाद जब इस देश का इतिहास लिखा जाएगा तब

" शताब्दियों बाद जब इस देश का इतिहास लिखा जाएगा तब इतिहासकारों द्वारा इस देश के उपहासकारो का चर्चा होगा ...लिखा जाएगा भारत मुगलों, अंग्रेजों के अलावा इटली का भी गुलाम रहा ...सभी सरदार राष्ट्र भक्त और स्वाभिमानी नहीं होते कुछ मनमोहन सिंह जैसे भी होते हैं ...अमेरिका के परखनली शिशु को भारत में प्रधानमंत्री बनाने के प्रयोग का सिलसिला मनमोहन प्रयोग की अपार सफलता के बाद जारी था और इसके लिए फोर्ड फाउउंडेशन 'आप ' की बाप थी ...नक्सलाईट के सर्वश्रेष्ठ शहरी वकील को मेगासेसे अवार्ड दिया जाता था किन्तु इस काम में संदीप पाण्डेय फिसड्डी और केजरीवाल अव्वल थे ...कुछ ख़ास आदमियों ने 'आम आदमी पार्टी ' बनायी थी जिसमें आम आदमी गुमनाम था ...कोंग्रेस के सोनियाँ काल में उनके दामाद रोबर्ट्स बढेरा की भूमिका कम और भूमि अधिक हो गयी थी . सोनियाँ भारत में सबसे बड़ा विदेशी निवेश थीं और उनके अपनी ससुराल के स्वर्णिमकाल में बोफोर्स से ले के वेस्टएण्ड हैलीकोप्टर तक हर बड़ी 'डील' का नाभिकीय केंद्र इटली था ...भाजपा अपने भरोसे कभी नहीं रही , कभी राम भरोसे थी कभी मोदी भरोसे . ...नीतिश कुमार बिहार का आख़िरी मुग़ल शासक था ...मुलायम सिंह सत्ता का हसीन सपना देखने वाले आख़िरी मुंगेरी लाल थे ...दिग्विजय सिंह को अपने मुग़ल होने का मुगालता था और मुगलों का मानना था कि अपनी कौम से दगा करने वाला किसी का सगा नहीं हो सकता ...बच्चे निबन्ध लिखेंगे कि आतंकियों के मुकदमें वापस लेने के प्रयास से अखिलेश अल -कायदा को क्या फ़ायदा दे सके . इनकी समाजवादी सरकार में 'समाज' सहमा हुआ था और 'वाद' बकैती कर रहा था . क़ानून व्यवस्था में आम आदमी आतंकित था और आतंकियों को सरकार जेल से बाहर निकालने की जुगत में थी जैसे जेल आतंकियों के लिए नहीं आतंकितों के लिए बनी हो ...कश्मीर भारत का हिस्सा कम मुग़ल सल्तनत अधिक थी ...रजिया सुलतान की तरह एक थीं कांसीराम की बहन मायाबती किन्तु रजिया की तरह वह गुण्डों में कभी नहीं फंसी सिवा गेस्ट हाउस काण्ड के ...उच्च न्यायालय का जज बनाने की जुगत जिस्मानी भी थी रूहानी भी और कहानी भी . महेश्वरी आढ़त के अलावा अभिषेक मनु सिंघवी के योग शिविर में भी चरित्र का अनुलोम विलोम करना पड़ता था ...लश्कर -ऐ -तैयबा की आत्मघाती इशरत जहाँ को मार गिराने वाले पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाया गया था ...मंहगाई से त्रस्त हरजिंदर का थप्पड़ खाने के बाद शरद पवार का राजनीतिक पतन शुरू हो गया था ...ह्त्या कर रहे नक्सलियों के मानवाधिकार सब पर भारी थे ...भारत देश में दूसरे नम्बर के बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक कहा जाता था ...संविधान जातिप्रथा को वर्जित करता था किन्तु जाति के आधार पर आरक्षण दिया जा रहा था ... सामाजिक न्याय से प्रेरित भेंसों और गधों ने घुडदौड़ में अपनी आबादी के हिसाब से आरक्षण की माँग की थी ...हर नया संसदीय सत्र पुराने घोटाले को भूल कर नए घोटाले पर चर्चा करता था और उस अन्जाम तक न पहुँचने वाली चर्चा पर खूब खर्चा करता था ...जिस खेल को विश्व के दस प्रतिशत देश भी नहीं खेलते थे उस क्रिकेट की भारत में लोकप्रियता थी ...क्रिकेट और फिल्म से देश के नायक आ रहे थे और यह क्रिकेट और फ़िल्मी नायक दरअसल एक खलनायक दाउद इब्राहिम के गुर्गे थे ...देश में कुछ घोटालेबाज चटवाल, कुछ घोषित आतंकी , कुछ दाउद की मुम्बईया फ़िल्मी रखेलें भी पद्म पुरुष्कार पा रही थीं ...यों तो इस कालखण्ड देश हत्यारों से आक्रान्त था पर फिर भी कुछ लोग गांधी जी की ह्त्या को जायज ठहरा रहे थे और हत्यारे गौडसे को महिमा मंडित कर रहे थे, तो दूसरे लोग नक्सली हत्यारों को जायज ठहरा रहे थे, तीसरे लोग इस्लामिक आतंकवादीयों के कातिलों के कसीदे पढ़ रहे थे , अपनी सामूहिक हत्याओं से छुब्ध एक समुदाय के लोग स्वर्ण मंदिर में भिण्डरावाले जैसे कातिल को महिमामंडित कर संतों /गुरुओं के समकक्ष रख रहे थे कुल मिला कर पूरे राष्ट्र में कातिलों के पक्ष में क़त्ल हो रहे लोग लामबंद हो रहे थे ...हिन्दुओं के छह हजार मंदिर तोड़ने का कोई चर्चा नहीं था पर इससे उकताए लोगों ने जब एक बाबरी मस्जिद तोड़ दी तो अंतरराष्ट्रीय श्यापा था ...हिन्दूओं में लोग अपनी बेटी का नाम 'रति' रखते थे और मुसलमानों में 'सूफियान' जैसे नाम बहुत प्रचलित थे पर इस्लाम के लिए बहुत कुछ करने वाले नाम 'औरंगजेब' का प्रचलन ही ख़त्म हो चुका था ...कोई अपनी औलाद का नाम 'औरंगजेब' नहीं रखता था ...राष्ट्र में एक महाराष्ट्र भी था जहां जहाँ देश के अन्य प्रान्तों के लोग उतने ही असुरक्षित थे जितने भारतवासी ऑस्ट्रेलिया में ...और ...और इतिहास में यह भी शायद इस बार लिखा जाए क़ि इस बार भी इतिहासकार उतने ही वैचारिक बेईमान थे जितने पहले के इतिहासकार ...इतिहासकार गुजरे समय की सीवर की सफाई करते रहे हैं उन्होंने गुजरे समय के सूरज की समीक्षा ही कब की है ?" ----- राजीव चतुर्वेदी

Monday, January 13, 2014

फसल ...

"फसल ...
खडी होने तक हर हरामखोर फासले पर रहता है
और अपने बच्चों से भी फसल से फासला रखने को कहता है
फसल की प्यास छीन कर वह स्वीमिंगपूल में पानी भरता है
फसल में शामिल है किसान की उदासी
फसल में शामिल है नहर की खंती
फसल में शामिल है सूरज की किरण और उसमें पकता हुआ किसान
फसल में शामिल है नीलगाय से जूझता किसान
फसल में शामिल है किसान का वह पसीना
जिसको क्या समझेगी कोई हरामखोर हसीना
फसल में शामिल है पाताल का पानी और थोड़ी ओस
फसल में शामिल है आढ़तिये की मक्कारी और किसान का जोश
कुछ हवा ...थोड़ी चांदनी ...सहेज के रखा गया किसान की बेटी का दहेज़
फसल में शामिल है किसान के बच्चे के मटमैले से सपने
फसल में शामिल हैं किसान के कुछ अपने
फसल में शामिल है टाट -पट्टी के स्कूल की भी न चुकाई गयी फीस
फसल में शामिल है गाय का रम्भाना ...बैल का मर जाना
...ट्रेक्टर की कमर तोडती किश्त
यों समझ लो कि फसल में पूरी सृष्टि और थोड़ी वृष्टि शामिल है
फसल में शामिल है पूरी की पूरी कायनात
फसल में नहीं शामिल हैं कोई अर्जुन ...कोई नागार्जुन ...हम और आप
हम शामिल हो जायेगे तो यह साहित्यिक लफ्फाजी कौन करेगा ?
फसल ...
खडी होने तक हर हरामखोर फासले पर रहता है
और अपने बच्चों से भी फसल से फासला रखने को कहता है . " ---- राजीव चतुर्वेदी