Wednesday, July 31, 2013

छोटे लोगों की बड़ी महत्वाकांक्षाओं का परिणाम हैं छोटे राज्य



" छोटे लोगों की बड़ी महत्वाकांक्षाओं का परिणाम हैं छोटे राज्य . एक सरदार पटेल थे जिन्होंने लगभग आधा हजार छोटे राज्यों का विलय कर भारत संघ यानी Union of India बनाया ...वर्तमान भारत राष्ट्र के स्वरुप को साकार किया . फिर समय बीता ...देश में देश की व्यापकता के अनुपात में छोटे नेता आये जो राज्यों में आपने राजनीतिक कद के अनुसार समायोजित होते चले गए ...फिर उससे भी छोटे नेता आये ...वह बौने थे ...उनका कद छोटा था ...बड़े राज्य के फ्रेम में उनकी तश्वीर छोटी पड़ती थी सो उन्होंने अपना कद बढाने की कवायद करने से इसे बेहतर समझा कि राज्य को छोटा किया जाए ...तश्वीर बड़ी नहीं है तो फ्रेम को छोटा किया जाए ...और छोटे -छोटे राज्य बनने लगे ...क्या कोई सोरेन ,मुंडा , जोगी ,रमन सिंह,निशंक ,कोशियारी कभी किसी बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बन सकता था ? --- नहीं ...कभी नहीं ....इनका कद इतना बड़ा नहीं था सो किसी प्रदेश से एक या दो मंडल काट कर एक छोटा राज्य बना कर वहाँ किसी छोटे नेता को मुख्यमंत्री बना दिया गया और छुटभैये नेता की ...बौने नेता की बड़ी महत्वाकांक्षा पूरी हुयी ...यह अलगावबाद कहाँ ले जा रहा है ? ...विखंडन की यह प्रक्रिया कहाँ रुकेगी ? आज छोटे प्रदेश मांगे जा रहे हैं कल छोटे देश की माँग होगी ? यह विखंडन की मानसिकता है ...राष्ट्र को खंडित करने की मानसिकता ...उत्तर प्रदेश से कट कर बने प्रदेश के नए नाम "उत्तरांचल" से विखंडन की मानसिकता के लोगों का अहंकार तुष्ट नहीं हुआ उन्हें तब संतोष हुआ जब इसका नाम पुनः परिवर्तित कर "उत्तराखण्ड" कर दिया गया . इसमें खण्डित करने की मंशा व्यक्त जो होती थी ...कल जम्मू से कश्मीर अलग करने की बात उठेगी तब उसे किस तर्क से रोकोगे ? बोडोलैंड की बात किस तर्क से रोकोगे ? फिर आबादी के अनुपात में बर्बादी करने की क्षमता की धौंस दे कर मुस्लिम बहुल इलाके अपने अलग -अलग राज्य मांगेंगे तब किस तर्क से रोकोगे ? ...यह आसान किश्तों में राष्ट्र तोड़ा जा रहा है ...सरदार पटेल का भारत संघ का सपना तोड़ा जा रहा है ...आप विराट राष्ट्र के अथक प्रयास के साथ हैं या प्रथक प्रयासों के साथ है ? सावधान, देश के जो लोग साथ नहीं चल सकते वह प्रथक हो कर प्रथकतावादी आन्दोलन चलाते है ...यह बौने लोगों की बड़ी महत्वाकान्क्षाओं का प्रतिफल है ...आज बड़े प्रदेश से पृथक होंगे ...कल बड़े देश से पृथक होंगे ...हमें पृथक नहीं अथक लोगों की जरूरत है ...राष्ट्र स्थापित होने की प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही टूट रहा है ...आसान किश्तों में ...नागरिकता के रिश्तों में ." ------ राजीव चतुर्वेदी


Sunday, July 28, 2013

जिन्दगी पैर नहीं तो पहियों पर भी चल ही लेती है




" जिन्दगी पैर नहीं तो पहियों पर भी चल ही लेती है ,
खुदा खुदगर्ज था हम जिन्दगी को तनहा तलाशने निकले .
"

--- राजीव चतुर्वेदी

Saturday, July 27, 2013

तवायफ के होंठ पर तबस्सुम तलाशते लोगों

"तवायफ के होंठ पर तबस्सुम तलाशते लोगों,
धूप बादल से गुजर कर धरतियों पर आ गई.
चांदनी के चरित्रों पर अब दोपहर की सनद चस्पा है,
शाम को सहमा हुआ सा उजाला रात से राहत की उम्मीद क्यों करता है ?
सहमे हुए से शहर में सोचती है सभ्यता,
वक्त की यह वेदना
आँखों से टपक कर गाल पर क्यों आ गयी ?"
----राजीव चतुर्वेदी

Monday, July 8, 2013

खुदा खुद से ही खौफजदा था यारो

" तू कभी खुद आ मेरे पास तो तुझे खुदा कहूं ,
वरना खामखयाली में रखा क्या है ?
" ----राजीव चतुर्वेदी
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"अजीब सी रवायत है जरायम की दुनियाँ में ,
लोग सीरत नहीं सूरत छिपाए फिरते हैं
." ----राजीव चतुर्वेदी 
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"  खुदा खुद से ही खौफजदा था यारो ,
उसने ताउम्र अपनी सूरत छिपा कर रखी
." ----राजीव चतुर्वेदी
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"वह मजहब गिरोह जैसा  है ज़रा गौर करें ,
सरगना रूह्पोश और बन्दे नकाबपोश दहशतगर्द हैं काफी
." --- राजीव चतुर्वेदी 

     

Sunday, July 7, 2013

निर्जन में जब सृजन ज़रा सा विचलित होगा ...मेरे टुकड़े खनक उठेंगे

" इसके पहले कि मैं बटोर पाता अपने को
वह मेरे कुछ टुकड़े उठा कर चल दिया
मैंने अपने बिखराव को जोड़ा बहुत
पर मुकम्मल होता तो होता कैसे ?
दुखड़े मेरे पास पड़े थे
टुकड़े उसके पास पड़े थे
वह थोड़ा मेरे पास पड़ा था
मैं भी उसके पास पड़ा था थोड़ा सा
खंडित व्यक्तित्वों के दम्भ पहाड़ों पर पत्थर से लुडक रहे हैं
सिद्धों के सिद्धांत देख कर गिद्धों से तितली ने पूछा
मुझको फूल जहाँ पर दिखते तुमको लाशें क्यों दिखती हैं ?
दृष्टिकोण का क्षितिज जहाँ हो
आसमान धरती पर आ कर टिक जाता है
और वहाँ तक मैं बिखरा हूँ
देवदार का प्रश्न यही है दावानल से
मेरे टुकड़े मत लौटाओ
ब्रम्हलीन होने का मतलब जान चुका हूँ
दूर क्षितिज पर लक्ष समझता था मैं जिसको
आज वहाँ पर यक्ष खड़ा है
और मरीचिका टुकड़े मेरे कैनवास पर सजा रही है
निर्जन में जब सृजन ज़रा सा विचलित होगा
मेरे टुकड़े खनक उठेंगे .
" ----- राजीव चतुर्वेदी

Thursday, July 4, 2013

बड़ा हमलावर दौर है यह

" बड़ा हमलावर दौर है यह
जब कातिलों को मसीहा बताने की मुहिम में
क़त्ल कर दिए गए लोगों के परिजन भी शामिल है
एक मजहब में ऐसा खुदा भी है
जो एक मासूम से जिनह करता है
भगवानो देवताओं की लम्बी लाइन नाजायज पिताओं की भी है
किन्तु कोई कर्ण उनसे नहीं लड़ता
लेकिन परिक्रमा के विरुद्ध पराक्रम का पक्षधर कार्तिकेय खडा हो जाता है
एक राजा के अश्वमेध यज्ञ के बिगडैल घोड़े को उसके ही बेटे मर्यादा में बांधते हैं
बताओ लव-कुश, कार्तिकेय, सरस्वती के कहाँ कितने मंदिर हैं ?
सभी भगवानो के हाथ में असलहे हैं
और नकाबपोश आतंकियों का ऐसा खुदा है जो रूह्पोश है
बड़ा हमलावर दौर है यह
जब कातिलों को मसीहा बताने की मुहिम में
क़त्ल कर दिए गए लोगों के परिजन भी शामिल है .
" -----राजीव चतुर्वेदी

Tuesday, July 2, 2013

महिला आरक्षण--"देश राजनीति" से नहीं "देह राजनीति" से एन्ट्री


"महिलाओं को राजनीति में आरक्षण चाहिए .-- क्यों ? कैसा ? आखिर यह करना क्या चाहती हैं ? देश के लिए कुछ करने के लिए आरक्षण की जरूरत नहीं जहाँ जिसे आरक्षण चाहिए उसे राष्ट्र भक्षण के लिए आरक्षण चाहिए राष्ट्र संरक्षण के लिए आरक्षण कोई नहीं माँगता . कितनी महिलायें हैं जो देश राजनीति के कारण आज राजनीतिक पटल पर पर हैं और कितनी देह राजनीति के कारण राजनीतिक मलाई चाट रही हैं ?---सभी जानते हैं . यह पश्चिमी देशों का फैलाया मिथक है कि एशिया और मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप में महिलाओं की दुर्दशा है जबकि सच यह है कि दुनियाँ की सर्वाधिक महिला नेता एशिया में ही हुईं हैं इजराइल की गोल्डा मायर, श्रीलंका की भंडारानायिके, म्यांमार की आन सां सूकी, मलेशिया की मेघावती सुकार्णोपुत्री , बंगलादेश की खालिदा जिया और शेख हसीना, पाकिस्तान की बेनजीर भुट्टो, भारत की इंदिरा गाँधी विश्व राजनीति की महत्वपूर्ण नेता रही हैं . इसके समान्तर सच यह भी है कि विश्व में सर्वाधिक वैश्याएँ भी एशिया और उसके भी भारतीय उपमहाद्वीप से हैं . भारतीय वर्तमान संसद को देखें -- लोकसभा अध्यक्ष महिला, नेता विपक्ष महिला और सरकार भी महिला की . कुछ समय पहले राष्ट्रपति भी महिला थीं . और इस नेतृत्व के बाद महिला की दशा दिशा यह कि विश्व में बालवैश्याओं में हर सातवीं बाल वैश्या भारत की बेटी है . वर्तमान  भारत में जहाँ-जहाँ महिला मुख्यमंत्री हैं वहाँ -वहाँ विश्व के सबसे बड़े वैश्यालय हैं . ममता बनर्जी का कोलकाता, शीला दीक्षित की दिल्ली और जयललिता की चेन्नई इसके प्रमाण हैं कि राजनीतिक नेतृत्व से महिला की दुर्दशा नहीं सुधरने वाली ... धर्मेन्द्र के साथ "पानी में जले मोरा गोरा बदन ...पानी में", गाते गाते कब और क्या गुल खिला कर जय ललिता आज पानी से भरे समुद्र तटीय प्रांत की महान नेता हैं यह सर्वविदित है .सतीप्रथा के संस्कारों के सतत विरोध की सनद जयप्रदा की दैहिक दैविक भौतिक जरूरतें पूरी करते करते अमर सिंह पस्त हो चुके हैं . सोनियाँएँ , मेनकाएँ , अम्बिकाएं और अन्य तमाम अपने दौर की विष कन्याएं "देश राजनीति" से नहीं "देह राजनीति" से एन्ट्री कर हमारी राजनीति के स्खलित चरित्र का चिन्ताजनक कारण बनी ही चुकी हैं . चंडीगढ़ की हिना फ़ना हो चुकीं है .किसी सोनिया को क्या पता खुले में शौच जाने को अभिशिप्त महिला की ग़मगीन गरिमा का सच ...उसे संसद नहीं शौचालय चाहिए . आज देश का लेटेस्ट फैशन जानना हो तो किसी भी राजनीतिक दल के कार्यालय चले जाईये वहाँ कुछ क्या, बहुत कुछ कर गुजरने का जज्वा लिए विभिन्न आकार प्रकार की कई नगर बधू और पिनकोड बधू तक मिल जाएँगी जिनकी छठा बता रही होगी कई वह देश के लिए बहुत कुछ ही नहीं सब कुछ करने पर आमादा है बशर्ते ... आरक्षण समाज सेवा की लगन के आधार पर नहीं लिंग के आधार पर चाहिए ...लिंग के आधार पर अनुकम्पा पुरुष को कापुरुष या शिखन्डी बनने, महिला को वैश्या बनने और हिजड़े को नेग मिलने की हद तक अपमान के पंकिलतल तक डुबो देता है ...फिर भी अगर लिंग आधारित आरक्षण की दरकार है तो पुरुषों को 33 % , महिलाओं को 33 %, हिजड़ों को 33 % और शेष बचे 01 % में बौबी डार्लिंग, रेणुका चौधरी, राखी सावंत सरीखी लिंगेतर प्रतिभाओं को समायोजित कर देना चाहिए ." ----- राजीव चतुर्वेदी