Sunday, April 28, 2013

चीख तिरष्कृतों का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है

"आज चीखने का मन कर रहा है
मैं चीखना चाहता हूँ शहर की सबसे ऊंची इमारत पर चढ़ कर
मैं चीखना चाहता हूँ इस दौर की सबसे गहरी खाई में उतर कर
मैं चीखना चाहता हूँ सन्नाटे में आहट बन कर
संसद हो या सर्वोच्च न्यायलय या समाचार
सभी में लोग सुबकते हैं चीखते क्यों नहीं ?
मैं चीखूंगा तुम्हारे शालीन सहमे से मौन पर चस्पा इबारत की तरह
मैं चीखूंगा इसलिए कि
चीख पुरुष्कृतों  की आत्ममुग्ध बस्ती में
तिरष्कृतों का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है .
"------  राजीव चतुर्वेदी

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