Sunday, May 12, 2013

हर उस स्त्री को प्रणाम जिसके मन में ममता है


"गर यह युग पूछ सकता तो पूछता कर्ण की माँ से माँ बनने का सबब ... अगर यह युग पूछ सकता तो पूछता मरियम से माँ बनने का सबब ... अगर यह युग पूछ सकता तो पूछता फातिमा से माँ बनने का सबब ...आज भी बहुत सी लडकियां माँ तो बनती हैं पर लोकलाज के कारण यह सच छिपाने को अभिशिप्त हैं ...हमारी संस्कृति में "ममता" नारी स्वभाव है ...गुण है ...विशेषण है ... तभी तो लोग अपनी कुमारी बेटियों का नाम भी ममता रखते हैं ...लेकिन सभ्य समाज में भी किसी स्त्री के "माँ" बनने का लाईसेंस समाज जारी करता है ...ममता वह रिश्ता है जिसके लिए विवाह नहीं निर्वाह जरूरी है ...हर उस स्त्री को प्रणाम जिसके मन में सभ्यता,सृजन और संस्कृति के प्रति ममता है .
      तमाम तरह के वैज्ञानिकों को एक जगह इकट्ठा कर दें . उनको चोकर /भूसा /बरसीम और जो कुछ मांगें वह भी दे दें पर वह दूध नहीं बना सकते क्योकि इस सब के अलावा दूध बनाने के लिए चाहिए ममता का रसायन जो सिंथेटिक नहीं होता ...वह कहाँ से लाओगे ?"
        यह वनस्पति की ममता है कि अन्न हो रहा है ...यह गाय /भेंस /बकरी आदि की ममता है कि दूध हो रहा है ...यह मुर्गी की ममता है जिसे अण्डा आप खा रहे हैं ...ममता नहीं होगी तो यह सभ्यता भूखी कुपोषित ही मर जायेगी --- प्रकृति में माँ की प्राकृतिक भूमिका और ममता को प्रणाम ...गौर से देखो धरा,धरणी , प्रकृति, बेटी ,पत्नी ,प्रेमिका ,महिला मित्र सभी में ममता है ...ममता स्त्री का आवश्यक और अपरिहार्य प्राकृतिक गुण है ....सभी प्रकार की प्राकृतिक ममता को प्रणाम !!
" ---- राजीव चतुर्वेदी


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