सात्विकता को संबोधित
"विश्व में या यों कहूं कि सम्पूर्ण मानव सभ्यता में रक्षा बंधन जैसे पर्व कहीं नहीं हैं. नारी को केवल भोग्या समझने वाली संस्कृतियाँ देख लें कि भारतीय या यों कहें कि हिन्दू संस्कारों में नारी को उसके विभिन्न स्वरूपों में आदर दिया गया है. समाज में एक पुरुष और स्त्री के
पति-पत्नी के परस्पर स्वाभाविक रिश्ते हैं...प्रेमी -प्रेमिका के भी रिश्ते हैं पर कितनो से ? --शेष वृहद् समाज में स्त्री-पुरुष संबंधों की सात्विकता को संबोधित करनेवाला यह एक मात्र पर्व है. रक्षा बंधन की बधाई !!" ----राजीव चतुर्वेदी
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"रक्षा
-बंधन केवल भाई -बहनों का ही त्यौहार नहीं है ---यह सभी प्रकार के रक्षित
और रक्षक के बीच का अनुबंध है. पहली राखी इन्द्र ने अपनी पत्नी शचि के
बांधी थी. हुआ यों कि इन्द्र ने असुर कन्या शची से विवाह किया था. रावण
"रक्ष -सह" (हम अपनी रक्षा स्वयं करेंगे ) आन्दोलन का प्रणेता और प्रकांड
विद्वान् होने के साथ ही पराक्रमी भी था. वह इंद्र की ऐन्द्रिक हरकतों या
यों कहें कि चरित्र हीनताओं से छुब्ध हो अक्सर इंद्र का लात -जूता संस्कार
करता था. पर अईयास इंद्र नहीं सुधरा. चुकी राज सत्ता इंद्र के पास थी अतः
इंद्र ने रावण और उसके समर्थकों को धमकी दी कि राज सत्ता आपकी सुरक्षा नहीं
करेगी. इस पर रावण ने "रक्ष -सह" (हम अपनी सुरक्षा स्वयं करेंगे ) आन्दोलन
चलाया. और इस प्रकार रावण के समर्थक "राक्षस" कहलाये. और इंद्र की राज
सत्ता के सुर से सुर न मिलाने वाले रावण के अनुयाई "असुर" कहलाये. रावण के
समर्थक अपने हाथों में रावण की सरकार द्वारा जारी जो गंडा (कलावा ) बांधते
थे वह दरअसल रावण की सत्ता द्वारा जारी रक्षा करने का अनुबंध होता था जिसे
रक्षा बंधन कहा जाता था. इधर इंद्र अपनी ऐन्द्रिक हरकतों से बाज नहीं आया
उसने एक असुर कन्या शचि का अपहरण करके उससे विवाह कर लिया जिससे क्रोधित हो
असुरों ने उसपर हमला कर दिया कामुक इंद्र भागा और अपने रनिवास में घुस गया
वहां उसने शची के राखी बांधी और अपनी रक्षा करने के लिए अनुबंधित किया. और
इस प्रकार शचि ने रनिवास से बाहर आकार अपने पति इंद्र की जान बचाई.
---रक्षा बंधन की बधाई. " ----राजीव चतुर्वेदी
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