"मैं वह बरगद हूँ
जो इसी राज मार्ग पर खड़ा हुआ था वर्षों से
मैं वह बरगद हूँ
जो इसी राज मार्ग पर पड़ा हुआ हूँ अब मेरी छाया को तरसोगे
वह रस्ते जो मेरी छाया में सुस्ताते थे,... खामोश खड़े हैं
हम तो गुजरी पीढी के हैं... गुजर गए
इन रस्तों से तो युग भी गुजरे हैं
खेतों की मेड़ें टूट रहीं अब प्लॉटों की पैमाइश से
इच्छाएं आकार ले रहीं जेबों की गुंजाइश से
हम तो गुजरी पीढी से हैं गुजर गए
गुलशन की अब बात गुनाहों सी लगती है ...गुलदस्ते सस्ते होते हैं
यह सड़कें अब विस्तार ले रही
और सभ्यता फ़ैल रही है
दूर तलक देखो तो देखो
वहां टाल पर मेरी लकड़ी तौल रही है
वह जो चिड़िया चहक रही थी मेरी डाल पर अब गवाह है
ह्त्या मेरी हुयी यहाँ है
चिड़िया की चिंता पर चर्चा कौन करेगा ?
एक मौन अब भी तारी है
कटते पेड़ कभी तुम देखो ...संकेतों से समझो तुम भी
यहाँ तुम्हारी भी बारी है." ----राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
खुबसूरत प्रस्तुती......
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