"जीवन में च्यवनप्राश और विचारों में
क्रांतिप्राश दीर्घायु बनाता है. कृष्ण ने भारत में दो क्रांतियाँ कीं पहली
कंस की राज सत्ता के विरुद्ध किसान क्रान्ति दूसरी स्थापित राज सत्ता के
विरुद्ध महाभारत...इसके बाद आज तक इस देश में कभी कोई क्रांति नहीं हुई
...हाँ ग़दर अवश्य हुए ...आज देश में जगह जगह क्रांति के कुटीर उद्योग चल
रहे हैं ...वामपंथी साथ साल से क्रांति कराह रहे हैं ...कुछ क्रांति का कथक
कर रहे हैं ...कुछ कविता में क्रान्ति कर
रहे हैं ...कुछ कार्टून में क्रांति करके खुद कार्टून बन रहे हैं...कुछ
कोकशास्त्रीय कवि क्रांति का प्रचार ऐसे कर रहे हैं जैसे कंडोम हो ...कुछ
मोमबत्ती मार्का लडकीयाँ भी जश्न के तरीके से जनानी क्रांति कर रही
हैं...कुछ NGO क्रान्ति का थोक और खुदरा कारोबार कर रहे हैं...इस बीच तमाम
हरी ,भूरी ,नीली ,काली ,लाल , पीली ,सफ़ेद क्रांति भी सुनी जा रही हैं...कुछ
माचिश से बीड़ी सुलगाने के बाद शेष आग से क्रांति की काल्पनिक मशाल सुलगा
कर अपनी सामाजिक प्रासंगिकता सिद्ध कर रहे हैं तो कुछ अपना वजूद. क्रांति
के लिए जरूरी है संकल्प की सूझ और विकल्प की बूझ. क्या किसी के पास है कोई
वैकल्पिक व्यवस्था का मसौदा ? क्या किसी के पास है कोई संकल्प का शिलालेख ?
यह पीढी इसे तैयार कर ले तब अगली पीढी के लिए क्रांति की पृष्ठ भूमि तैयार
हो सकेगी अन्यथा अपने -अपने चेहरे पर फेयर एंड लबली की तरह क्रांति की
क्रीम लगा कर अपना अपना बाज़ार तैयार करिए --- संदीप पाण्डेय,अग्निवेश, इसके
सटीक उदाहरण हैं."----राजीव चतुर्वेदी