Wednesday, September 19, 2012

गणपति को याद रखो हे पर कार्तिकेय को क्यों भूल गए ?


"गणपति को याद रखो हे गणराज्य के जन-गण-मन पर कार्तिकेय को क्यों भूल गए ? कार्तिकेय के पास राजसत्ता नहीं रही इसी लिए भूल गए तुम उस स्वतंत्र प्रतियोगी को.वरना शंकर-पार्वती का बेटा तो वह भी था. सच तो यही है कि जिसकी राजसत्ता होती है हम उसके ही यशोगान करते हैं. लेकिन दूसरा पहलू भी है .

प्लेटो की रिपब्लिक से और रोम गणराज्य से पहले महाभारत के शान्ति पर्व से भी पहले प्रथम गणराज्य (Republic) के गणपति (Head of Republic) गणेश थे. गणराज्य का गणपति कैसा हो परिकल्पना देखिये-- राजसत्ता का स्वरूप देखें हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और यानी क़ानून व्यवस्था का नागरिकों में भय तो हो पर दमन नहीं, नागरिकों की वेदना सुनने के लिए शाशन के कान बड़े बड़े हों. गणराज्य के गणपति की नाक (सूंड) लगातार जमीनी सचाई की महक सूंघती रहे. राजसत्ता ताकतवर किन्तु भावुक हो. राजसत्ता का कद बड़ा हो बौना न हो. और गणराज्य के नेता की सवारी कारों का काफिला न हो गणेश की सवारी की तरह छोटे चूहे जैसी सवारी हो या यों समझ लें जैसे हमारा प्रधानमन्त्री / राष्ट्रपति किसी छोटी कर से चले. इस आईने में देखें तब के गणराज्य के गणपति को, तब की राजनीति के गणेश से अब की राजनीति के गोबर गणेशों तक. गणेश चतुर्थी की बधाई !!"
----राजीव चतुर्वेदी

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