Wednesday, December 5, 2012

आओ हम दुःख की रजाई ओढ़ कर सो जाएँ धीरे से

"आओ हम दुःख की रजाई ओढ़ कर सो जाएँ धीरे से
और मैं तुमसे ये पूछूं -- " खुश तो हो ? "
सर्द हैं आहें,    हवाएं खौफ से खामोश हैं
सहमे से मकानों की टूटी खिड़कियों से आती चांदनी चर्चा करेगी
हरारत की इबारत दर्ज हो जब सांस में तेरी
जरूरत का जनाजा सुबह सपने ओढ़ कर
उस चौखट को जब लांघेगा जहाँ दरवाजे अब गुमशुदा हैं
सहम के पूछती है रात -- "सफ़र लंबा है तेरा ?"
आओ हम दुःख की रजाई ओढ़ कर सो जाएँ धीरे से
और मैं तुमसे ये पूछूं खुश तो हो ?"     ---- राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

Raj Dixit said...

सहम के पूछती है रात -- "सफ़र लंबा है तेरा ?"
आओ हम दुःख की रजाई ओढ़ कर सो जाएँ धीरे से
और मैं तुमसे ये पूछूं खुश तो हो?

Aapki ye panktiyan sachmuch kabile taareef hai.
Aap ne in panktiyon me hum Vanchito ki takleef ka sajeev chitran kiya hai..

In behtareen panktiyon ke liye aapko badhai...