"वह कसमों सा आया और रस्मों सा चला गया ,
मैं पेड़ों सी खडी रही
वह हवा सा गुज़र गया
हिला गया बदन मेरा
खिला गया वह मन मेरा
वह गुज़र गया तो पता चला
मुझे गुजारिशों पे गुरूर था ." ---- राजीव चतुर्वेदी
मैं पेड़ों सी खडी रही
वह हवा सा गुज़र गया
हिला गया बदन मेरा
खिला गया वह मन मेरा
वह गुज़र गया तो पता चला
मुझे गुजारिशों पे गुरूर था ." ---- राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
बहुत भावपूर्ण रचना |
आशा
वाह ... बहुत सुंदर
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