Monday, February 25, 2013

तुम उसे कविता क्यों समझ बैठे

"मेरे जज़बात मेरे जख्मों से वाबस्ता थे ,

मैं कराहा था तुम उसे कविता क्यों समझ बैठे ."
---राजीव चतुर्वेदी

वह तेरी आहट थी या मेरी बौखलाहट मौन टूट गया

"वह तेरी आहट थी
या मेरी बौखलाहट
मौन टूट गया
मौन ने तनहाई से तंग आकर तरन्नुम का तराना छेड़ा
मौन मुझको देखा तो कुछ लोगों ने फ़साना छेड़ा
मौन मेरे मन से टकराया तो आहट निकली
और उस आहट से जो अक्षर निकले
मौन से भयभीत से लोगों की वही भाषा थी
कहीं भड़का वह लावा बन कर
भूगोल में ज्वालामुखी की तरह फूट गया
कहीं अंगार ...कहीं श्रृगार ...कहीं संसार के सदमे
कहीं दहका ...कहीं महका ...
कहीं चहका वह चिड़ियों जैसा
ओस की बूँद में नहाया वो तितलियों जैसा
जमा तो दर्द हिमालय की वर्फ बन बैठा
उड़ा तो वह जलजले की गर्द बन बैठा
मेरे अन्दर के समंदर से वो उठता रहा भाप बन बन कर
गिरा तो बंजर भी बरसात में सरसब्ज हुए
मौन मेरा मेरे मन में पिघला
आँख से टपका था ...गाल से हो कर गुजरा
वह तेरी आहट थी
या मेरी बौखलाहट
मौन टूट गया ." 
   ----राजीव चतुर्वेदी

आज आतंकवाद का एक मजहब है या यों कहें पूरी दुनिया में एक ही मजहब का आतंकवाद है और वह है इस्लाम


"जबसे पाकिस्तान के एक लाख से अधिक अत्याधुनिक अमरीकन हथियारों से लैस सैनकों ने भारतीय सेना के आगे बिना एक भी गोली चलाये आत्म समर्पण किया (1971) तबसे पाकिस्तान भारत से प्रत्यक्ष युद्ध से कतराता है और परोक्ष युद्ध करता है ... इस परोक्ष युद्ध के लिए पाकिस्तान की ISI भारतीय मुसलमानों का मजहब के नाम पर इस्तेमाल करती है . जगह-जगह  हर संवेदनशील स्थान पर स्लीपिंग मोड्यूल देशद्रोह का काम कर रहे हैं ...जहां -जहां सैन्य छावनीयाँ हैं वहाँ के निकासी द्वार के मुहाने की सड़क पर एक मज़ार रातों रात उग आती है जहां से भारतीय सैन्य गतिविधियों की पाकिस्तान को मुखबिरी होती है ...हर सैन्य छावनी बाले  स्थान के रेलवे स्टेशन पर गौर करें उसके एक सिरे पर सरकारी जमीन में एक मज़ार बना दी गयी होगी .यहाँ से भारतीय सैन्य गतिविधियों  पर नज़र रखी जाती है और जरूरत पड़ने पर सूचना पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं को दी जाती है ...मस्जिदें  हमला करने के अड्डे बन चुकी हैं अलविदा की नवाज़ के बाद मुम्बई में शहीद स्मारक पर हमला ...लखनऊ में बुद्ध पार्क में बुद्ध प्रतिमा पर हमला ...वह भी क्यों ?--- केवल इस आक्रोश को व्यक्त करने के लिए कि पड़ोसी देश म्यांमार (वर्मा ) में बलात्कार करते पकडे जाने पर वहाँ की जनता ने दो मुसलमान युवकों को पीट -पीट कर मार डाला था लेकिन यह लोग किसी मस्जिद किसी मजलिस से भारतीय सैनिक हेमराज का सिर पाकिस्तान द्वारा काट लिए जाने पर कभी कोई बयान नहीं दिया . मुहर्रम पर पाकिस्तान के समर्थन के मस्जिदों मजलिसों से नारे सभी ने सुने हैं ...बस वोट बैंक की लालच में राजनीति ने नहीं सुने ...इसी स्लीपिंग मोड्यूल में एक वर्ग सक्रीय आतंकवाद में --तोड़फोड़ में भागीदारी करता है और दूसरा वर्ग उसे छिपाने का समाज और पुलिस को भ्रमित करने का और आतंक की परोक्ष हिमायत करने का काम करता है ...यह वह लोग हैं जो कथित तौर पर पढ़े लिखे हैं जो तमाम तरह के मीडिया पर जा कर यह कहते सुने जा सकते है कि --"आतंकवादीयों का कोई मजहब नहीं होता ." जबकि सभी जानते हैं कि भारत में आज आतंकवादीयों का एक ही मजहब है-- "इस्लाम" ...भारत ही नहीं पूरी दुनियाँ इस्लामिक आतंकवाद से  आक्रान्त है ...यह आतंकियों के स्लीपिंग मोड्यूल कभी अफज़ल गुरू को महिमा मंडित करते हैं क़ि मरते समय उसने कुरआन माँगी ,उसको मरने के पहले अपने पांच साल के बच्चे से भी मिलने नहीं दिया जबकि सभी जानते हैं कि जब वह गुजरे 11 साल से जेल में था तो उसका 5 साल का बेटा कैसे था आदि आदि ...जो लोग इस्लाम के प्रति वास्तव में सजग हैं और अपने आपको मुहम्मद का वंशज मानते हैं वह इस निर्णायक मोड़ पर अपना दीन और ईमान सम्हालें वरना यजीद और सूफियान के विचार वंशज तो दहशतगर्दी में लगे हैं और आज आतंकवाद का एक मजहब है या यों कहें पूरी दुनिया में एक ही मजहब का आतंकवाद है और वह है इस्लाम."--राजीव चतुर्वेदी                    


Thursday, February 14, 2013

उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति


"कृष्ण उस प्यार की समग्र परिभाषा है जिसमें मोह भी शामिल है ...नेह भी शामिल है ,स्नेह भी शामिल है और देह भी शामिल है ...कृष्ण का अर्थ है कर्षण यानी खीचना यानी आकर्षण और मोह तथा सम्मोहन का मोहन भी तो कृष्ण है ...वह प्रवृति से प्यार करता है ...वह प्राकृत से प्यार करता है ...गाय से ..पहाड़ से ..मोर से ...नदियों के छोर से प्यार करता है ...वह भौतिक चीजो से प्यार नहीं करता ...वह जननी (देवकी ) को छोड़ता है ...जमीन छोड़ता है ...जरूरत छोड़ता है ...जागीर छोड़ता है ...जिन्दगी छोड़ता है ...पर भावना के पटल पर उसकी अटलता देखिये --- वह माँ यशोदा को नहीं छोड़ता ...देवकी को विपत्ति में नहीं छोड़ता ...सुदामा को गरीबी में नहीं छोड़ता ...युद्ध में अर्जुन को नहीं छोड़ता ...वह शर्तों के परे सत्य के साथ खडा हो जाता है टूटे रथ का पहिया उठाये आख़िरी और पहले हथियार की तरह ...उसके प्यार में मोह है ,स्नेह है,संकल्प है, साधना है, आराधना है, उपासना है पर वासना नहीं है . वह अपनी प्रेमिका को आराध्य मानता है और इसी लिए "राध्य" (अपभ्रंश में हम राधा कहते हैं ) कह कर पुकारता है ...उसके प्यार में सत्य है सत्यभामा का ...उसके प्यार में संगीत है ...उसके प्यार में प्रीति है ...उसके प्यार में देह दहलीज पर टिकी हुई वासना नहीं है ...प्यार उपासना है वासना नहीं ...उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति इसी लिए वासना वैश्यावृत्ति है . जो इस बात को समझते हैं उनके लिए वेलेंटाइन डे के क्या माने ? अपनी माँ से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपने मित्र से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी बहन से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी प्रेमिका से प्यार करो कृष्ण की तरह ... .प्यार उपासना है वासना नहीं ...उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति ." ----राजीव चतुर्वेदी

Thursday, February 7, 2013

फ़तवा क्या है ?


"फ़तवा क्या है ? ज़रा इसके क्रमबद्ध विकास की कहानी और क्रम पर तो गौर करें . फतह (जीत), फर्ज (दायित्व ), फरमान (शासनादेश ), फतवा (निर्देश ), फौत (मृत्यु ) और फातिहा (शोक /श्रद्धांजलि गीत या वाक्य ) ... जी हाँ जनाब अब समझ चले होंगे फतह,फर्ज,फरमान,फ़तवा,फौत और फातिहा जैसे शब्द संबोधनों के विकास की क्रमबद्ध कहानी ...यह राज्य करने की आकांक्षा को अपने गर्भ में छिपाए मजहब की भाषा है . फ़तवा, जेहाद और खिलाफत शब्द हर मुसलमान के जेहन में हैं पर उनमें से शायद ही कोई उसका सही प्रयोग करता हो ...सही प्रयोग तो तब करेगा जब उसे सही अर्थ पता हो ...खिलाफत का सही अर्थ है "समर्थन" किन्तु लोग इसे "विरोध" की जगह इस्तेमाल करते हैं जबकि उनको "मुखालफत" कहना चाहिए ...खिलाफत तो हुयी खलीफा की हाँ में हाँ मिलाना या समर्थन . खैर बात एक बार फिर फतवे पर है ...कश्मीर की चार बेटियों ने एक बैण्ड बनाया किन्तु मुल्लाओं को लगा उनका बैण्ड बज गया ...बैण्ड का नाम है परगास (प्रभात किरण ) .फतवा आया कि बैण्ड पर प्रतिबन्ध है क्योंकि वह इस्लाम के विरुद्ध है ...संगीत से इस्लाम को ख़तरा है ...एक हिंसक मजहब संगीत से खौफजदा है इस लिए खामोश हो जाओ ...बेचारी बेटियाँ खामोश हो गयीं ...अजीब लोग हैं यहाँ जहां खवातीन (महिलायें ) खामोश रहती हैं ...आयशा के आंसू कोई नहीं पोंछता पर फाहिशा का मुजरा हर कोई सुनता है ...शमशाद बेगम , नूरजहाँ , बेगम अख्तर ,सुरैया ,आबिदा परवीन , रूना लैला, नादिया हसन जाने कितने ही नाम हैं जिन पर कभी कोई फतवा नहीं आया ...नकाब और हिजाब की बात करते मौलवियों को फिल्म में काम करती किस्म -किस्म से जिस्म दिखाती फाहिशा नहीं दिखीं ...अभी हाल की बीना मालिक नहीं दिखी ...जीनत अमान की दुकान नहीं दिखी ...भारत -पाकिस्तान -बँगला देश से निकाह के नाम पर अरब देशों के शेखों द्वारा खरीद कर ले जाई जाती हुयी अपनी बेटियाँ नहीं दिखीं ...क्या उनको यह भी नहीं पता कि विश्व की हर चौथी बाल वैश्या भारत -पाकिस्तान -बँगला देश की बेटी है और मजहबी आधार पर यदि देखा जाए तो बाल वेश्याओं के मामले में मुसलमान विश्व के बहुसंख्यक हैं ...इस पर तो कभी फतवा नहीं आया ....जुआ/सट्टा हराम है पर दाउद इब्राहम का काम है ,फिक्सिंग के लिए क्रिकेट बदनाम है पर एक बड़ी तादाद इसमें लगी है सो इस पर भी फतवा नहीं आया ...कल एक मौलवी TV में ही बता रहे थे कि TV देखना हराम है उस पर भी फतवा पर देशद्रोह हराम नहीं है इस लिए उस पर कोई फतवा नहीं ...बेगुनाहों का क़त्ल हराम नहीं है इस लिए उस पर भी कोई फतवा नहीं ...हमारी बेटियों को खरीद कर कोइ शेख /समृद्ध ले जाए उस पर भी कोई फतवा नहीं ...मुजरा सुनने वालों पर भी कोई फतवा नहीं ...बलात्कार करने वालों पर भी कोई फतवा नहीं ....वाह रे मौलवी तेरी फतह की इक्षा और फतवे की समीक्षा ...नीरज ने लिखा था --"अब तो एक ऐसा मजहब भी चलाया जाए जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए ." -----राजीव चतुर्वेदी



Saturday, February 2, 2013

मैं मरने के पहले एक बार चीखूंगा जरूर

"मैं मरने के पहले एक बार चीखूंगा जरूर ,
तुम मरने के बहुत पहले ही चीखो
क्योंकि मरने के बाद आदमी नहीं चीखता
और अगर चीखा होता
तो शायद
इतनी जल्दी मरता भी नहीं
तमाम लोग जो ज़िंदा दिखते हैं, मर चुके हैं
इसी लिए चीखते ही नहीं
मैं चीखना चाहता हूँ
क्योंकि अब मैं मरना चाहता हूँ
और बता देना चाहता हूँ
मरना मेरी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है
और मरने से पहले चीखना सामाजिक जिम्मेदारी है
मेरा जन्म हुआ था तो तय था अब मुझे एक दिन मरना ही होगा
मेरी चीख में लिपटी है मेरी शेष बची जिन्दगी
जिसे मैं जीना चाहता था
तुम्हारी तरह
मैं अब तुम्हारी तरह जीना नहीं चाहता
मैं अब अपनी तरह मरना चाहता हूँ
आखिर क़त्ल होने के पहले चीखने का हक़ तो है मुझे
मेरी चीख वह अंतिम आवाज़ है जिससे शुरू होती है कातिल की पहचान
तमाम लोग जो ज़िंदा दिखते हैं, मर चुके हैं
इसी लिए चीखते ही नहीं
मैं चीखना चाहता हूँ
मेरे मरने के बाद मेरी शवयात्रा में शामिल लोग कहेंगे
यह शक्स मरने के पहले बेहद ज़िंदा था
और इसका आशय यह भी होगा कि
ज़िंदा लोग मरने के पहले ही बेहद मुर्दा हैं
इसी लिए चीखते ही नहीं ." ----राजीव चतुर्वेदी

Friday, February 1, 2013

राष्ट्र के प्रतीकों को तोड़ कर आसान किश्तों में हमने राष्ट्र को तोड़ा है

"पुराने नायकों की प्रतीक प्रतिमा हमने तोड़ दी और नए नायक हम पर हैं नहीं अब युवा प्रेरणा किससे ले ? ...शाहरुख खान या सचिन से ? ...नायक समाज का कुतुबनुमा होता है ...नायकों की प्रतिमा /छवि टूटने के साथ ही हमारा कुतुबनुमा भी टूट गया ...आज हम दिशाहीन से खड़े हैं ...वास्तविक नायक सदैव राजनीति से आते हैं ...शंकर, राम, कृष्ण, मुहम्मद , ईसा ...भारत गुलाम था संघर्ष की राजनीतिक प्रक्रिया में नायकों का उदय हुआ लक्ष्मी बाई ,तात्याँ टोपे, नाना फडनवीस, मंगल पाण्डेय, ऊधम सिंह, भगत सिंह ,सुभाष, चन्द्र शेखर आज़ाद, दादा भाई नौरोजी, वर्दोलाई जैसे नायकों का उदय हुआ ...इनमें एक महानायक उदित हुआ महात्मा गांधी तो हम ने ही उसकी ह्त्या कर दी ...गांधी की ह्त्या आज़ाद भारत की पहली आतंकवादी घटना थी और जो तर्क गणाधी जी की ह्त्या के दिए गए उनके अनुसार अगर मारना था तो मारते जिन्ना को ...पर जिन्ना नहीं गाँधी को को पार कर देश का उस समय का सबसे बड़ा प्रतीक तोड़ दिया वह भी स्वदेशी का नारा देने वाले को विदेशी पिस्तौल से मार कर ...अहिंसा के नारे को हिंसा से बुझा कर ...गाँधी मरने के बाद भी प्रतीक प्रतिमा के रूप में समाज और राजनीति को दिशा देता रहा तो वामपंथियों ने उसकी तश्वीर पर भगत सिंह की तश्वीर दे मारी ...अभी भी गाँधी की तश्वीर पूरी तरह हमारे जहन में टूटी नहीं थी तो आंबेडकर की तश्वीर दे मारी ...शेष बची तश्वीर की किरचों पर सुभाष की तश्वीर दे मारी ...हमने सभी की प्रतिमाएं तोड़ डालीं ...सारे कुतुबनुमा तोड़ दिए ...इस्लाम मूर्तियाँ तोड़ कर संस्कृति तोड़ता है इसी लिए मूर्ती भंजक है ...भारत को पहले मुगलों ने गुलाम बनाया ...मुगलों को अंग्रेजों ने गुलाम बनाया ...जब आज़ाद हुए तो हमको फिर से गुलाम बनाने की चुनौती मुगलों और अंग्रेजों के सामने थी और हम उनके इस षड्यंत्र में जाने अनजाने शामिल हो गए ...आज हमारे पास कोई राष्ट्र नायक प्रतीक प्रतिमा (व्यक्तित्व ) नहीं है ....राष्ट्रवादी व्यक्तित्व का ध्रुवीकरण होना बहुत जरूरी है ...प्रतीक प्रतिमा के अभाव में देश का युवा टूटा कुतुबनुमा लिए दिशाहीन सा भटक रहा है ...उसे कभी अन्ना ,कभी केजरीवाल ,कभी राम देव के हाथों गांधी की टिमटिमाती लौ जल कर फिर मसाल बनती दिखती है पर बनती नहीं है ....असली प्रतीकों के अभाव में फर्जी प्रतीक गढ़े और मढ़े जा रहे हैं ...किसी भी राष्ट्र को तोड़ने के लिए आवश्यक है उसके प्रतीकों को तोड़ना ...भारत में मूर्ति भंजक मुसलमानों ने यह किया तो गांधी की ह्त्या कर अति हिंदूवादी संगठनों ने भी वही किया .....आज इस राष्ट्र पर कोई प्रतीक प्रतिमा नहीं है ...राष्ट्र के प्रतीकों को तोड़ कर आसान किश्तों में हमने राष्ट्र को तोड़ा है ....इसके पहले हम फिर से गुलाम बने हमको अपने प्रतीकों पर ध्रुवीकरण करना होगा ." -----राजीव चतुर्वेदी