Impleadment
This is the assertion of anyone's right to be heard...
Monday, February 25, 2013
तुम उसे कविता क्यों समझ बैठे
"मेरे जज़बात मेरे जख्मों से वाबस्ता थे ,
मैं कराहा था तुम उसे कविता क्यों समझ बैठे ."
---राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
दिगम्बर नासवा
said...
बहुत खूब ...
February 28, 2013 at 1:24 PM
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