Friday, March 15, 2013

मुलजिमों के हाथ मुआवजा लेना तुम्हें कैसा लगा ?

"मुलजिमों के हाथ मुआवजा लेना तुम्हें कैसा लगा ?
सहमती सी शाम को अब सच बताओ
आंसुओं की यह इबारत बढ़ी कीमत पर कल अखबारों में छपेगी
वेदना, संवेदना, सतह पर तैरते साहित्य के जुमले सभी
निरर्थक मौत पर
सार्थक जिन्दगी का पैबंद सिलकर शामियाने सा सजाया जा रहा है
और उस शोकाकुल से सरकारी जलसे में
पाखंडी पराक्रम की पैमाइश करता वह शिखंडी सियासत का
वह पैसा फेंकता है जो उसके बाप का हरगिज नहीं था
लाश की कीमत लागात
े लोग
काश तुम जिन्दगी की कीमत जानते होते
कातिलों ने कफ़न की दूकान खोली है
और उस दूकान को दरकार ग्राहक की गुनाहगारों का ही गुणगान करती है
मुलजिमों के हाथ मुआवजा लेना तुम्हें कैसा लगा ?
सहमती सी शाम को अब सच बताओ
आंसुओं की यह इबारत बढ़ी कीमत पर कल अखबारों में छपेगी।"
----राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

वाणी गीत said...

अर्थ पर कायम रिश्ते क्या सोचेंगे भला !