"तुम कभी भी वह नहीं थे जो मैंने तुम्हें समझा
फिर भी यह मरीचिका और मृगतृष्णा का रिश्ता था और रास्ता भी एक
परिभाषा और अभिलाषा के बीच प्रतीत की पगडण्डी का परिदृश्य प्रश्न है
तो उत्तर कैसा ?
जो लोग सूरज की रोशनी में रास्ता नहीं देखते
वह पूछते हैं ध्रुवतारे से सप्तर्षि की पहेली
सभ्यता की हर शुरूआत में प्रश्न प्रतीकों में अंगड़ाई लेता है
हर सुबह के गुनगुनाते सूरज का गुनाह है यह
तुमने कुछ कहा ही नहीं और मैंने सुन लिया
सत्य के संकेत उगते हैं निगाहों में। " ----- राजीव चतुर्वेदी
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