"मैंने इश्क की इबादत कब की ?
ये रवायत थी कवायद कब की ?
मैंने तो सोचा था इश्क से महकेगी फिज़ा
मैंने सोचा था कुछ फूल यहाँ महकेंगे
मैंने तो सोचा था कुछ जज़वात यहाँ चहकेंगे
मैंने सोचा था चांदनी ओढ़े हुए कुछ ख्वाब खला में होंगे
मैंने सोचा था इकरा तेरे रुखसार का उनवान होगी
मैंने सोचा था तेरे बदन की खुशबू मेरी मेहमां होगी
मैंने चन्दा को समेटा था तेरे माथे पे बिंदी की जगह
तू इबादत थी या आदत मेरी,-- सहमी हुयी शहनाई से भी पूछ ज़रा
तू शराफत थी या शरारत मेरी,-- तन्हाई से भी पूछ ज़रा
मैंने इश्क की इबादत कब की ?
यह महज शब्द है अल्फाजों में सिमटा सा हुआ
अब इसे अहसास उढा कर मैं सो जाऊंगा." ----राजीव चतुर्वेदी
ये रवायत थी कवायद कब की ?
मैंने तो सोचा था इश्क से महकेगी फिज़ा
मैंने सोचा था कुछ फूल यहाँ महकेंगे
मैंने तो सोचा था कुछ जज़वात यहाँ चहकेंगे
मैंने सोचा था चांदनी ओढ़े हुए कुछ ख्वाब खला में होंगे
मैंने सोचा था इकरा तेरे रुखसार का उनवान होगी
मैंने सोचा था तेरे बदन की खुशबू मेरी मेहमां होगी
मैंने चन्दा को समेटा था तेरे माथे पे बिंदी की जगह
तू इबादत थी या आदत मेरी,-- सहमी हुयी शहनाई से भी पूछ ज़रा
तू शराफत थी या शरारत मेरी,-- तन्हाई से भी पूछ ज़रा
मैंने इश्क की इबादत कब की ?
यह महज शब्द है अल्फाजों में सिमटा सा हुआ
अब इसे अहसास उढा कर मैं सो जाऊंगा." ----राजीव चतुर्वेदी
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