Impleadment
This is the assertion of anyone's right to be heard...
Wednesday, August 1, 2012
और मैं आस में इन्कलाब लिए बैठा हूँ
"
लोग लाशों में भी इश्क तलाश लेते हैं,
और मैं आस में इन्कलाब लिए बैठा हूँ.
"
---राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
विभूति"
said...
बेहतरीन अंदाज़...
August 1, 2012 at 7:52 AM
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Followers
Blog Archive
►
2014
(6)
►
May
(1)
►
January
(5)
►
2013
(92)
►
December
(5)
►
October
(1)
►
September
(2)
►
August
(5)
►
July
(7)
►
June
(9)
►
May
(5)
►
April
(15)
►
March
(12)
►
February
(7)
►
January
(24)
▼
2012
(236)
►
December
(20)
►
November
(13)
►
October
(11)
►
September
(12)
▼
August
(14)
बिखरे सपनो की किरचें घायल करती हैं
हम दरअसल अमेरिका के गुलाम हैं
गैलीलियो और गुलेलों के बीच
ज़रा हाथ दिखाओ, --- कहीं खंजर तो नहीं ?
ईद को कैसे कहूं मैं अब मुबारक ?
न्यायिक दृष्टिकोण का यह खतना तो खलिश पैदा कर रहा है
यह षड्यंत्र है लोकतंत्र नहीं
अब समझ लीजिए न्याय कैसा होता होगा ? "
इस 15 अगस्त के माने ही क्या है ?"
प्रथम कृषक नेता श्री कृष्ण जन्म दिवस की बधाई
मैं वह बरगद हूँ
सात्विकता को संबोधित
और मैं आस में इन्कलाब लिए बैठा हूँ
जजवात का जोखिम नहीं जेबों के बजन देखो
►
July
(27)
►
June
(16)
►
May
(23)
►
April
(38)
►
March
(29)
►
February
(33)
►
2011
(9)
►
May
(5)
►
March
(3)
►
February
(1)
►
2010
(24)
►
March
(8)
►
February
(8)
►
January
(8)
About Me
Unknown
View my complete profile
1 comment:
बेहतरीन अंदाज़...
Post a Comment