"तेरी मुस्कराहट मेरी नज़रों का धोखा भी तो हो सकती है,
ज़रा हाथ दिखाओ, --- कहीं खंजर तो नहीं ?
हर बार किसी घर से निकाला है मेरे अपनों ने,
सोचता हूँ बारहा फिर वही मंजर तो नहीं ?
मैंने तो रिश्ते के पौधे भी लगाए थे यही सोच कर
इन दरख्तों के साए में कुछ अपने भी यहाँ बैठेंगे
प्यार के पौधे दरख़्त बनने से पहले ही यहाँ सूख गए ,
हौसले अब हाँफते हैं, सोचता हूँ, ---कहीं तेरे जहन की जमीन ही बंजर तो नहीं ? " ----राजीव चतुर्वेदी
ज़रा हाथ दिखाओ, --- कहीं खंजर तो नहीं ?
हर बार किसी घर से निकाला है मेरे अपनों ने,
सोचता हूँ बारहा फिर वही मंजर तो नहीं ?
मैंने तो रिश्ते के पौधे भी लगाए थे यही सोच कर
इन दरख्तों के साए में कुछ अपने भी यहाँ बैठेंगे
प्यार के पौधे दरख़्त बनने से पहले ही यहाँ सूख गए ,
हौसले अब हाँफते हैं, सोचता हूँ, ---कहीं तेरे जहन की जमीन ही बंजर तो नहीं ? " ----राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
बहुत सुंदर भाव ...
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