Impleadment
This is the assertion of anyone's right to be heard...
Sunday, October 14, 2012
देह के सपने
"
देह के सपने मुझे आते नहीं हैं,
देश के सपने मुझे सोने नहीं देते.
"
---राजीव चतुर्वेदी
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उसकी दैहिकता का संज्ञान कराते वस्त्रों में
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
मैं एक कविता सी बहती रही
अगर आप उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं तो
विश्वनाथ से सारनाथ तक हर अनाथ से पूछा मैंने
देह के सपने
वह चर्चित अन्धेरा चरागों तले
एक कविता आज बिखरी है ,---तुम्हें अच्छी लगेगी
वह उसकी ही अमानत है
हाथ में खंजर लिए तहजीब के मंजर नज़र आते किसे हैं ?
होठों पर रूठी सी
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