Wednesday, October 24, 2012
अगर आप उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं तो
े हैं और मिल कर उसका नाक कान काट डालते हैं. एक अकेली निहत्थी महिला पर हथियार उठाना ...उस पर अंग भंग करने की हिंसा करना वैसे ही है जैसे अक्सर पता चलता है कि किसी लडकी पर किसी ने तेज़ाब फैंक दिया. ---यह किस समाज की कौन सी नैतिकता थी ?...कैसे मर्दों की कौन सी मर्यादा थी ? अपनी बहन के प्रति इस घटना से भी उत्तेजित हो कर रावण ने सीता जी के प्रति कोई हिंसा नहीं की--- इस कसौटी पर भी महानता का मूल्यांकन करते चलिए. चौदह साल के बनवास के बाद भी और भाई भारत द्वारा चौदह साल सही ढंग से शास न चलाने के बाद भी राम ने भरत को सिंघासन से उतार दिया और खुद उस पर बैठे फिर भी असीम महत्वाकांक्षा ने हिलोरें लीं और राजसूय यज्ञ कर विश्व विजय अभियान चलाया . राजसूय यज्ञ के लिए पत्नी की अनिवार्यता थी और सीता परित्यक्ता थीं तो सोने की सीता बना कर बैठा ली गयीं जैसे सीता उनकी पत्नी नहीं युद्ध की चल वैजन्ती हो. और उदध के मानक क्या गढ़े उस पर भी गौर करें -- विभीषण जिसे आज भी राजनीतिक शब्दावली में गाली ही माना जाता है. छिप कर बाली को मारा और पूजा करते में मेघनाद को मारा --यह कौनसी यौद्धिक नैतिकताएं थी ? याद रहे जब कुतुबनुमा गलत होगा तो समाज दिशाहीन होगा और इसका दूसरा पहलू यह भी है कि जब समाज दिशाहीन होता है तो निश्चय ही उसका कुतुबनुमा गलत होता है. चूंकि राम हमारी आस्था के केंद्र हैं उनकी भाग्वाद्ता पर बहस नहीं करना चाहिए किन्तु मैं पुरुष भी हूँ अतः यह सवाल तो मेरे मन में है ही कि राम कैसे पति थे यह सीता से पूछो ? राम कैसे पिता थे --यह लव-कुश से पूछो ? राम कैसे जेठ थे यह उर्मिला (लक्ष्मण की पत्नी ) से पूछो जिसने वियोग झेला ? और प्राकृतिक जीवन का प्रणेता अप्राकृतिक मौत से क्यों मरा ? अपने चारो भाईयों के साथ उन्होंने क्यों जल समाधि ली ? ---क्या है कोई उत्तर ? ---याद रहे जब कुतुबनुमा गलत होगा तो समाज दिशाहीन होगा."
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