Sunday, October 14, 2012

विश्वनाथ से सारनाथ तक हर अनाथ से पूछा मैंने


"विश्वनाथ से सारनाथ तक हर अनाथ से पूछा मैंने,
कहाँ कबीरों की बस्ती है ?
क्या कबीर अब भी रहता है तेरे मन में ?
सच के संकेतों सा वह क्या सूझ रहा है ?
पाखंडों से अब भी क्या वह जूझ रहा है ?
लहरतारा से लहुराबीर...
हर अमीर से हर कबीर अब क्यों अधीर
है ?
बुद्धू से वह बौद्ध बुद्ध की चाह में उसकी राह देखते भटक रहे हैं सारनाथ में
और विश्व्नाथों की धरती अब अनाथ है
मालवीय के मूल्य और मुख्तारों से गुंडे, शेष बचे कासी के पण्डे
घाटों पर घट रही कीर्ति काशी की देखो
संकटमोचन केंद्र बिंदु है हर लोचन का...यही त्रिलोचन की बस्ती का सच है देखो
विश्वनाथ से सारनाथ तक हर अनाथ से पूछा मैंने,
कहाँ कबीरों की बस्ती है ?
क्या कबीर अब भी रहता है तेरे मन में ?
सच के संकेतों सा वह क्या सूझ रहा है ?
पाखंडों से अब भी क्या वह जूझ रहा है ?"
----राजीव चतुर्वेदी

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