"मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
पर पच्चीस प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि
उससे देश के अल्प संख्यकों के नाम पर खैरात खा रहे
दूसरे नंबर के बहुसंख्यक समुदाय मुसलमानों को ठेस पहुँचती
वैसे भी इस्लाम या तो खतने में रहता है या खतरे में
मैं पंद्रह प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि
उससे वास्तविक अल्पसंख्यकों जैसे
पारसी ,बौद्ध ,जैन और सिखों की आस्था को ठेस पहुँचती
पचास प्रतिशत सच इस लिए नहीं बोल सका कि
सनातन धर्मियों को ठेस न पहुँच जाय
दस प्रतिशत सच से
आर्य समाजी भी आहात हो सकते थे सो वह भी नहीं बोला
आखिर सभी की भावनाओं का ख्याल जो रखना था
इसलिए सौ प्रतिशत सच का एक प्रतिशत सच भी मैं नहीं बोल सका
अब क्या करूँ ? सच की शव यात्रा निकल रही है फिर भी फेहरिश्त अभी बाकी है
संविधान पर कुछ बोलो तो आंबेडकरवादियों को ठेस पहुँच जायेगी
यों तो मैं तमाम घूसखोर जजों को जानता हूँ
जो अब पेशकार के जरिये नहीं सीधे ही घूस ले लेते हैं
कुछ पेशकार के जरिये भी लेते हैं
पर उनकी वीरगाथा गाने से न्याय की अवमानना जो होती है
सांसदों विधायकों की बात करो तो उनके विशेषाधिकार का हनन हो जाता है
मैं लिखना चाहता था शत प्रतिशत सच
पर उससे तो अखबार के कारोबार को ठेस पहुँचती थी
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
इसीलिए अब सोचता हूँ
प्रकृति की बात करूँ ...प्रवृति की नहीं
और इसीलिए अब बाहर कोलाहल अन्दर सन्नाटा है." ----राजीव चतुर्वेदी
उससे वास्तविक अल्पसंख्यकों जैसे
पारसी ,बौद्ध ,जैन और सिखों की आस्था को ठेस पहुँचती
पचास प्रतिशत सच इस लिए नहीं बोल सका कि
सनातन धर्मियों को ठेस न पहुँच जाय
दस प्रतिशत सच से
आर्य समाजी भी आहात हो सकते थे सो वह भी नहीं बोला
आखिर सभी की भावनाओं का ख्याल जो रखना था
इसलिए सौ प्रतिशत सच का एक प्रतिशत सच भी मैं नहीं बोल सका
अब क्या करूँ ? सच की शव यात्रा निकल रही है फिर भी फेहरिश्त अभी बाकी है
संविधान पर कुछ बोलो तो आंबेडकरवादियों को ठेस पहुँच जायेगी
यों तो मैं तमाम घूसखोर जजों को जानता हूँ
जो अब पेशकार के जरिये नहीं सीधे ही घूस ले लेते हैं
कुछ पेशकार के जरिये भी लेते हैं
पर उनकी वीरगाथा गाने से न्याय की अवमानना जो होती है
सांसदों विधायकों की बात करो तो उनके विशेषाधिकार का हनन हो जाता है
मैं लिखना चाहता था शत प्रतिशत सच
पर उससे तो अखबार के कारोबार को ठेस पहुँचती थी
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
इसीलिए अब सोचता हूँ
प्रकृति की बात करूँ ...प्रवृति की नहीं
और इसीलिए अब बाहर कोलाहल अन्दर सन्नाटा है." ----राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
बहुत सशक्त रचना अपने समय को ललकारती .फटकारती सेकुलर ताकतों को .संविधानिक आहटों को .
मैंने तो जब भी बोला , सच ही बोला, दिल खोल कर सच ही बोला ! क्योंकी सच न बोलकर , चुप रह-रहकर , मेरे सत्यवादी दिल को 'ठेस' पहुँचती थी!
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