Impleadment
This is the assertion of anyone's right to be heard...
Sunday, November 4, 2012
जब मौत मेरी हमसफ़र हो तो डरूं किससे यहाँ ?
"जिन्दगी के कई सफ़र में मौत मेरी घात में थी,
जब मौत मेरी हमसफ़र हो तो डरूं किससे यहाँ ?"
--- राजीव चतुर्वेदी
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यहाँ राष्ट्र के भक्षण के हर अवसर पर आरक्षण है
शायद उनकी नज़रों में मैं पाकीज़ा नहीं
विदा होती हूँ मैं ...
यह आईना दिखाता अनुरोध है !!
आम आदमी को "आम" की तरह ख़ास आदमी चूसता रहा है
शोकगीत में उगी हुई यह कविता तुम्हें कैसी लगी ?
अतः आज हम मनाते हैं महिला मुक्ति दिवस
धन्य त्रियोदसी
सपने भी सहमे हैं इन बच्चों के
मैं भी मुस्कुराना चाहता था
...वरना मैं चुप हो जाऊंगा
जब मौत मेरी हमसफ़र हो तो डरूं किससे यहाँ ?
यह स्मृति है... स्मृत का क्या ?
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