"मैं भी मुस्कुराना चाहता था,
यह एक पंक्ति की बात तुम्हें कविता तो नहीं लगी होगी
कविता के ठेकेदारों के लिए यह कविता है भी नहीं
यह कहानी भी नहीं है ...उपन्यास भी नहीं कि इसका कोई बाजार हो
यह बड़े आदमी के साथ घटी कोई छोटी सी घटना भी तो नहीं है कि
इतिहास कहा जाये
इस लिए इतिहासविदों के लिए इतिहास भी नहीं है
यह किसी बेजान दारूवाला की दारू जैसी भविष्यवाणी भी नहीं
यह समाज शास्त्र भी नहीं ...अर्थशास्त्र भी नहीं
यह एक पंक्ति की बात तुम्हें कविता तो नहीं लगी होगी
कविता के ठेकेदारों के लिए यह कविता है भी नहीं
यह कहानी भी नहीं है ...उपन्यास भी नहीं कि इसका कोई बाजार हो
यह बड़े आदमी के साथ घटी कोई छोटी सी घटना भी तो नहीं है कि
इतिहास कहा जाये
इस लिए इतिहासविदों के लिए इतिहास भी नहीं है
यह किसी बेजान दारूवाला की दारू जैसी भविष्यवाणी भी नहीं
यह समाज शास्त्र भी नहीं ...अर्थशास्त्र भी नहीं
भौतिक ..रसायन ..भूगोल ...या बायलोजी भी नहीं ...सायक्लोजी भी नहीं
यह एक व्यक्ति की इच्छा है वोट बैंक की नहीं अतः राजनीति भी नहीं
संविधान के किसी भी प्राविधान में मुस्कुराना तो मौलिक अधिकार भी नहीं
इस लिए यह असंवैधानिक इच्छा है
इस मुश्किल हालात में मुस्कुराने का हक़ तो था मुझे
मैं भी मुस्कुराना चाहता था
मैं जानता हूँ तुम्हें यह कविता नहीं लगेगी
पर फिर भी
मैं मुस्कुराना चाहता था ." --- राजीव चतुर्वेदी
यह एक व्यक्ति की इच्छा है वोट बैंक की नहीं अतः राजनीति भी नहीं
संविधान के किसी भी प्राविधान में मुस्कुराना तो मौलिक अधिकार भी नहीं
इस लिए यह असंवैधानिक इच्छा है
इस मुश्किल हालात में मुस्कुराने का हक़ तो था मुझे
मैं भी मुस्कुराना चाहता था
मैं जानता हूँ तुम्हें यह कविता नहीं लगेगी
पर फिर भी
मैं मुस्कुराना चाहता था ." --- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
ek alag andaaz ki lagi rachna....
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