"शब्द जो मेरी कलम से छलके थे श्याही बन कर,
उसमें तू अपनी जिन्दगी के उजाले न तलाश.
शाम को सूरज ढला था खेत की जिस मेंड़ पर,
आने वाली पीढ़ियों के उसमें निबाले न तलाश.
हांफती सी जिन्दगी के रास्ते सुनसान से हैं,
इस सफ़र की शाम को पैरों में छाले न तलाश. "
------राजीव चतुर्वेदी
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