Impleadment
This is the assertion of anyone's right to be heard...
Wednesday, May 16, 2012
हम जुदा क्यों हो गए ?
"
रास्तों का इस तरह इस्तेमाल कुछ हमने किया,
हमसफ़र बनने चले थे हम जुदा क्यों हो गए ?
"
----राजीव चतुर्वेदी
"
वह एक कश्ती थी साहिल को तलाशा करती थी,
मैं एक तीर सा हवाओं में उड़ा फिर गुम हो गया .
"
----राजीव चतुर्वेदी
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भगवान् वही बन पाया जिसके हाथों में हथियार बहुत थे
"मैं नहीं हूँ अब वहां हो सके तो अक्स को अहसास ...
महात्मा गांधी की हत्या की सच्चाई
अखबारों में बिखरी हर आह दर्ज करो अब दस्तावेजों में
उसमें तू अपनी जिन्दगी के उजाले न तलाश
जब राष्ट्रीय चरित्र का अवमूल्यन होता है तो राष्ट्र...
शहनाईयाँ क्यों सो गयीं इस रात को
कथित किन्तु व्यथित साहित्यिक परिदृश्य
हम जुदा क्यों हो गए ?
छल चुके हैं लोग मुझको छाँह मैं बैठे हुए
मां न बनने का सामान जब मिलता हो दुकानों पर
मैंने तो सूरज से शर्तें पूछी थीं
हवाओं का रुख बदलने से पतंगों को है मलाल
अपनी जिन्दगी का मध्यांतर तलाशती इन पीढ़ियों से पूछ लो
सभ्यता सदमें में है और सोचती है
हम गुजरते हैं यहाँ परिदृश्य से
वह चिड़िया थी फिर भी टूटते पुल को देख सदमें में थी
दृष्टिकोणों के किवाड़ों पर जो सांकल थी यहाँ सिद्धा...
वह जो नीहारिका नाराज हो कर गिर रही है
उसे आंसू किसने कहा ?
एक सूरज आज फिर से रोशनी के साथ आया है
मई दिवस पर गर्व से कहो हम पाखंडी हैं
यहाँ शब्दों के झुरमुट से आवाज़ देता है कौन ?
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