This is the assertion of anyone's right to be heard...
Friday, May 4, 2012
वह चिड़िया थी फिर भी टूटते पुल को देख सदमें में थी
" वह चिड़िया थी फिर भी टूटते पुल को देख सदमें में थी घोंसला टूटा था उसका बारहा ,---होसला टूटा न था वेदना ...संवेदना के शब्द तो थे शेष मेरे पास अर्थ के अवशेष भी दिखते नहीं थे ... वह चहकती थी दहकती वेदना से हम थे शातिर शिल्प थे संवेदना के मैं खडा हूँ इस पार शब्दों को लिए और वह उस पार अहसासों के घोंसले में घर बसाए टूटते पुल देख कर सदमें में हैं इस पार खड़े शब्द और उस पार खड़े उत्तर बीच में अहसास की नदी बहती है आस -पास वह चिड़िया थी फिर भी टूटते पुल को देख सदमें में थी ." ----राजीव चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment