Friday, June 1, 2012

दूर... बेहद दूर जिन्दगी की उन जख्मी सी मुडेरों पर


"तेरी याद की धुंधली सी तश्वीर में जो आंसू के धब्बे हैं ...मेरे हैं,
याद कर तैने जमाने की नज़रें चुरा कर एक दिन इसको पोंछा था अपने ही आँचल से
सफ़र में गुमशुदा मुझको न कहना
गुमराह तुम थीं सोच कर मुझको बताना सपने में
दूर... बेहद दूर जिन्दगी की उन जख्मी सी मुडेरों पर
फकत एक फाख्ता सी याद थी तेरी
न देखूं तो शर्माती और देखता था तो उड़ जाती थी कहीं
मैं जानता हूँ तुम नहीं हो
तेरी याद तो है जुगनुओं सी टिमटिमाती रोज कहती है मुझे अब भूल जाओ
मत कुरेदो अब इन्हें यह जख्म हैं मेरे जिन्हें रखा है मैंने बेहद हिफाज़त से
इस जख्म से जो रिस रहा है खून मत कहना उसे वह याद है तेरी
अमानत हैं तेरी वह याद जो तैरती हैं मेरी आँखों में तारों सी
मत कहो आंसू उसे... मैं रो दूंगा
तू अब महज तश्वीर है और में मुजस्सम तश्विया, ---यह दौर ऐसा है." -----राजीव चतुर्वेदी

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