"शाकी, पैमाने ,मैखाने रिंद और जाम न रहे,
मुगलिया सल्तनत ढह गयी और वैसे आवाम न रहे.
जब तलक आँख में उनके पानी था मैं पी लेता था,
अब उनकी आँखों में पानी भी न रहा, ओस में नहाने वाले भी न रहे." -----राजीव चतुर्वेदी This is the assertion of anyone's right to be heard...
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