"आसमान जब अपनी बुलंदियों पर इतरा रहा होगा
जमीं भी जब कभी जमीनी हकीकत से रूबरू होगी
मैं दसमलव सा दरमियां की दूरियों के बीच दरख्तों सा खडा
अस्तित्व की अंगड़ाईयों के हर नए आकार को जब उपलब्धियों का नाम दूंगा
जब भी तुम गुजरोगे वहां से एक झोंके से हवा के
मुस्कुरा कर माफ़ कर दोगे मुझे."-----राजीव चतुर्वेदी
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