"मैं चुप हूँ
तुम भी बोलते क्यों नहीं ?
आओ इस सन्नाटे को जख्मी करें." ----राजीव चतुर्वेदी
"चीख कर चुप हो गया उनवान कविता का,
शब्द सहमे थे बोलते तो बोलते कैसे ?" ----राजीव चतुर्वेदी
"चराग की ही आग से छप्पर जला था गाँव का,
रो रही वह बस्तियां अब रोशनी से डरती हैं." ----राजीव चतुर्वेदी
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