Sunday, June 3, 2012

आरीयों पर "जंगल बचाओ" और खंजरों पर अहिसा लिख कर अर्थ का अनर्थ करने वाले लोग



"पाखण्ड प्रायोजित करना मानव की वह उपलब्धि है जिसने इसे धरती का प्रमुख प्राणी बना दिया. डायनासौर का वंशनाश हो गया गिद्ध से लेकर शेर तक वंशनाश की कगार पर हैं माने हिंसक प्राणीयों का वंशनाश करके आदमी ने अहिंसा के झंडे गाड़ रखे हैं. पहले परमाणु बम बनाए फिर परमाणु अप्रसार संधि करने लगे. पहले शास्त्र  बनाए फिर शस्त्र बनाए फिर निशस्त्रीकरण आन्दोलन चलाया. पहले जंगल काटे फिर पर्यावरण आन्दोलन चलाया. परिवारवाद बुरा है,... जातिवाद बुरा है क्योंकि यह संकीर्णता है फिर मानववाद क्यों सही है यह भी तो संकीर्णता है प्राणीवाद की बात करो  लेकिन नहीं इनको मुर्गी ,बकरी ,तीतुर, बटेर, नीलगाय, गाय, बकरी आदि खानी हैं सो प्राणीवाद के पहले ही इनकी उफनती संवेदना और करूणा ठहर जाती है. इनकी ही क्यों इनके गढ़े भगवानो की भी. अल्लाह,ईसा या भगवान् क्या केवल इंसानों के ही हैं उनको और प्राणीयों पर रहम नहीं आता ? अगर हाँ तो निश्चय ही वह वाद से ग्रस्त हैं और अगर नहीं तो फिर वह चाहे अल्लाह हो या ईश्वर शाकाहारी प्राणीयों की बलि से ही खुश क्यों  होता है ? हमने शेर मार डाले अब उनकी गणना कर रहे हैं और गर्भनिरोधक उपायों का प्रचार करनेवाली फ़िल्मी वेश्याएं शेर का वंश बढाने का संकल्प ले कर जंगल की सैर कर रही हैं सरकार को कौन बताये कि मैसूर के शेर और मुम्बईया सुअरीया के संयोग से शेर का वंश नहीं बढ़ सकता. खैर शेर तो हुआ ढेर अब आरी के आगे जंगल की बारी है और जोर शोर से पर्यावरण दिवस मनाने की तैयारी है. आरीयों पर "जंगल बचाओ" और खंजरों पर अहिसा लिख कर अर्थ का अनर्थ करने वाले लोग अब व्यर्थ में "अर्थ डे" का अनर्थ करने पर आमादा हैं ." ----राजीव चतुर्वेदी                 
  

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