" प्रणाम !
इस प्रभात को
दूब की ओस को
सूरज के जोश को
सुबह की धूप को
सच के स्वरुप को माँ- बहनों के रूप को
बड़ों की आस को
गमलों की प्यास को
बच्चों के हौसले को
चिडियों के घोंसले को
पत्नी के उलाहने को
पतियों के बहाने को
प्रेमिका की प्रतीक्षा को
सच की समीक्षा को
प्रणाम !!
खेतों को ... क्यारी को
माँ की लाचारी को
पिता के प्रयासों को
बहन के अहसासों को
गुजरी हर याद को
खारिज फ़रियाद को
सहमे से सपने को
याद में अपने को
सीमा के जवान को
खिसियाये किसान को
बुजुर्गों के आशीष को
फूलों को ...कलियों को ...
याद में भी ओझल हो चुकीं उन गलियों को
स्मृतिओं के झरोखे को
मित्रों के धोखे को
गाँव की उस गाय को
होस्टल की चाय को
गुमशुदा यादों को
गमजदा फरियादों को
तुमसे मुलाक़ात को
हर सार्थक बात को
एकाकी से कमरे में चहकती गौरैया को
प्रणाम !! "
----- राजीव चतुर्वेदी
इस प्रभात को
दूब की ओस को
सूरज के जोश को
सुबह की धूप को
सच के स्वरुप को माँ- बहनों के रूप को
बड़ों की आस को
गमलों की प्यास को
बच्चों के हौसले को
चिडियों के घोंसले को
पत्नी के उलाहने को
पतियों के बहाने को
प्रेमिका की प्रतीक्षा को
सच की समीक्षा को
प्रणाम !!
खेतों को ... क्यारी को
माँ की लाचारी को
पिता के प्रयासों को
बहन के अहसासों को
गुजरी हर याद को
खारिज फ़रियाद को
सहमे से सपने को
याद में अपने को
सीमा के जवान को
खिसियाये किसान को
बुजुर्गों के आशीष को
फूलों को ...कलियों को ...
याद में भी ओझल हो चुकीं उन गलियों को
स्मृतिओं के झरोखे को
मित्रों के धोखे को
गाँव की उस गाय को
होस्टल की चाय को
गुमशुदा यादों को
गमजदा फरियादों को
तुमसे मुलाक़ात को
हर सार्थक बात को
एकाकी से कमरे में चहकती गौरैया को
प्रणाम !! "
----- राजीव चतुर्वेदी
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