"शब्द सहम के सो जाते हैं सन्नाटे में ,
पदचाप सुनायी देती हैं कातिल सी
कुछ अंगारे जो सूरज से छलके थे
कुछ कहते थे
और अगरबत्ती कुछ सहमी सी जलती थी मेरे आँगन में
मैं निकला था उन दरवाजों से फिर वापस गया नहीं
माथे पर तिलक मांग के सिंदूरों का सच समझो
जीवन के लम्बे से रस्तों पर सप्तपदी का सच है कैसे हांफ रहा
परिभाषा की तेज हवा में सच का दीपक काँप रहा
परिभाषा की परिधि,... प्यार की अवधि संकल्पों की सांकल लिए विकल्पों के दरवाजे
रस्तों पर दो कदम चले फिर सहम गए वह रिश्ते सारे
खो गए कहीं अब ख़्वाबों में
जब श्रद्धा भी शेष नहीं तो श्राद्ध हमारा मत करना
उन तारों में खो जाऊंगा
तुम देर रात को छत पर आकर मुझसे बात किया करना ." ----- राजीव चतुर्वेदी
पदचाप सुनायी देती हैं कातिल सी
कुछ अंगारे जो सूरज से छलके थे
कुछ कहते थे
और अगरबत्ती कुछ सहमी सी जलती थी मेरे आँगन में
मैं निकला था उन दरवाजों से फिर वापस गया नहीं
माथे पर तिलक मांग के सिंदूरों का सच समझो
जीवन के लम्बे से रस्तों पर सप्तपदी का सच है कैसे हांफ रहा
परिभाषा की तेज हवा में सच का दीपक काँप रहा
परिभाषा की परिधि,... प्यार की अवधि संकल्पों की सांकल लिए विकल्पों के दरवाजे
रस्तों पर दो कदम चले फिर सहम गए वह रिश्ते सारे
खो गए कहीं अब ख़्वाबों में
जब श्रद्धा भी शेष नहीं तो श्राद्ध हमारा मत करना
उन तारों में खो जाऊंगा
तुम देर रात को छत पर आकर मुझसे बात किया करना ." ----- राजीव चतुर्वेदी
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