Impleadment
This is the assertion of anyone's right to be heard...
Monday, January 7, 2013
स्याही तो मेरे दिल में दफ़न थी यारो
"
स्याही तो मेरे दिल में दफ़न थी यारो ,
कलम ने आंसू से कलाम लिख डाला .
"
---- राजीव चतुर्वेदी
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धर्म नैतिकता का व्याकरण बनने के उद्देश्य से भटक कर...
कविता उसके पार खडी है लुप्तप्राय सी
यदि सच न बोलने की और सच न स्वीकारने की गीता /कुरआन...
मशाल के विरुद्ध बीड़ी ने आरक्षण की मांग की है
शब्द सहम के सो जाते हैं सन्नाटे में
कुछ ने समझा शब्दों का पथराव करो तो संस्कृति बनती है
अँधेरे में माचिश की तरह तुम ढाढस बंधाते ही रहे
कभी अभिमन्यु ... कभी हुसैन की तरह
अतीत टकराता है आईने से ...टूट जाता है
चीख लेने दो मुझे इस रात
वक्त की टूटी घड़ी दीवार पर अब भी धड़कती है
सर कटी वह लाश ज़िंदा है ...वो तेरी है ...वो मेरी है
न अल्लाह का है न राम का है जो भी बना है हमारे काम ...
आपकी नज़र का नज़रिया क्या है ?
Public of the Republic of Rapistaan
छिनरफंद की आज़ादी की लड़ाई नहीं लड़िये सामाजिक मूल्यो...
शब्दों में भावना डाल कर मैंने फेंटा
स्याही तो मेरे दिल में दफ़न थी यारो
संदेशों को संकेतों से समझो यारो
समझ सकते हो तो उसे कविता समझ लेना
चीख लेने दो मुझे ...
ज़िंदा कातिल पर भारी पड़ता है एक मुर्दा सन्नाटा
प्रणाम !
समय की बहती नदी के के किनारे बैठ कर
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