"चुप हैं चिडियाँ गिद्धों की आहट पा कर.
बस्ती भी चुप है सिद्धों की आहट पा कर
अंदर के सन्नाटे से सहमा हूँ मैं पर बाहर शोर बहुत है
संगीत कभी सुन पाओ तो मुझको भी बतला देना, --कैसा लगता है ?
शब्द सहम से जाते हैं खामोशी से
बोले तो थे पहले फिर वह मौन हुए
साहित्यों की दुनिया मैं भी सन्नाटा तारी है
संस्कृतियाँ संकट में हैं यह भी कहते हैं लोग यहाँ
पर अभियुक्तों की आहट पा कर सच भी मौन हुया
इस चुप्पी को अब कौन कहाँ से तोडेगा ?
बोलो तुम अंतर्मन की आवाजों से
मैं भी चीखूँ अब खडा हुआ फुटपाथों से
चुप हैं चिडियाँ गिद्धों की आहट पा कर.
बस्ती भी चुप है सिद्धों की आहट पा कर
जन - गण भी चुप है सरकारी राहत पा कर
सच घायल है पर मौत नहीं उसकी होगी
चीखो तुम भी ...चीखूँ मैं भी ---यह आवाजें अब आसमान को छू लेंगी ." ---राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
लाजवाब !!
आज भी हर चीख का दमन हों रहा हैं ...
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