Tuesday, February 21, 2012

आओ फरिश्तों से कुछ बात करें बहुत उदास है ये रात

"आओ फरिश्तों से कुछ बात करें
बहुत उदास है ये रात
कोहरे के लिहाफ ओढ़ कर शायद तुम हो जो झांकती हो मुंडेरों से अभी
चाँद की बिंदी लगा लो अपने माथे पर
समझलो तुम सुहागिन हो
तुम्हारी मांग में शफक सिन्दूर भर कर खोगई है भोर में
मैं लौट के आऊँगा देख लेना
तन्हाईयों में गूंजती रुबाईयों जैसा
धूप में सूखती रजाईयों जैसा
मैं लौट के आऊँगा देख लेना
हादसे में हाँफते सुबह के अखबार में सिमटा
देख लो तुम्हारी गोद में सर रखे सूरज सा लेटा हूँ मैं
एक रोशन सच चरागों से चुरा लाया हूँ मैं
तुम्हारी आँख में काजल लगा दूं रात का
मैं खो जाऊंगा तह किये कपड़ों में रखे स्नेह के सुराग सा
मैं याद आऊँगा सूनी मांग से सिन्दूर के संवाद सा
तुम्हारी आँख में काजल लगा दूं रात का
मैं जाता हूँ सितारों ने बुलाया है दूर से मुझको
ओढ़ लो कोहरे की चादर
बहुत सर्द है रात." ----राजीव चतुर्वेदी

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