Impleadment
This is the assertion of anyone's right to be heard...
Wednesday, February 29, 2012
इन खिडकीयों की चीख ने चौंका दिया मुझे
"
इन खिडकीयों की चीख ने चौंका दिया मुझे,
एक शाम और क़त्ल हुई तेरे इंतज़ार में .
"
------राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
रश्मि प्रभा...
said...
कब तक ये चीखें
March 1, 2012 at 1:38 PM
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इन खिडकीयों की चीख ने चौंका दिया मुझे
शायद कविता उसको भी कहते हैं
ईसा तुम मत आना मेरे द्वार
पर याद रहे, --भूख में जिन्दगी बेहद सुन्दर होती है
बेटियाँ सहमी सी थीं कस्ती सी साहिल पे बंधी
नृत्य देखा क्या थिरकती आत्मा का
हम बबूल के पेड़ हैं
पर याद रहे, --भूख में जिन्दगी बेहद सुन्दर होती है
चीखो तुम भी ...चीखूँ मैं भी ---यह आवाजें अब आसमान ...
फूल कुछ हैं, तितलियाँ कुछ, छाँव सी यादें
प्यार के अक्षांश को आधार दे दो
छत पे अकेले में वो मेरे साथ है
कठिन है सत्य बोलना
ईंट क्रांति का आख़िरी हथियार होती हैं
"थक गए चरागों की शहादत को सुबह कहते हो, हर शख्स त...
"खंडहर के खंडित स्वरों को अबाबीलों ने आवाज़ दी, याद...
मेरी नज़रों में
एक टूटते हुए इंसान में दरअसल सारा संसार ही टूटता है
प्यार की परिभाषा की भाषा तुम क्या जानो ?
जो नीहारिका नाराज हो कर गिर रही है
धरती की हथेली पर सड़क जब दौड़ती हो भाग्यरेखा सी
आचरण और व्याकरण की तंग गलियों से गुजरते शब्द की सि...
प्यार की परिभाषा बताओ तुम मुझे शब्दकोशों मैं कहाँ ...
यह विम्ब बिखरेंगे तो अखरेंगे, अखबार बन जायेंगे
हम कोलंबस हैं हमारे हाथों में भूगोल की किताबें नही...
सुना है...
ज्ञान के जुगनू और ये जंगल
शंखनादों से सुबह सहमी है... आर्तनादों से शाम
आओ फरिश्तों से कुछ बात करें बहुत उदास है ये रात
Impledaent
शिलालेख पर ओस इबारत गढ़ती हैं
चमगादड़ के शब्दकोष में सूरज अंधियारा करता है
लोकतंत्र की पृष्ठभूमि की पड़तालों में नन्हें से नच...
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कब तक ये चीखें
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