" सुना है वर्फ की चादर फ़ैली है पहाड़ों पर
सुना है ओस की वारिस हुई है देवदारों पर
सुना है सर्द है सूरज सुबह छुप गयी है कोहरे की रजाई में
सुना है सत्य के संकेत सीमित हैं बयानों तक
सुना है प्यार भी बिकने लगा है अब दुकानों पर
सुना है सड़कें रोनक हैं अँधेरे हैं मकानों पर
सुना है रात है गहरी कातिल बैठे हैं मचानो पर
सुना है इस सदी में न्याय की देवी की आँखें बंद हैं
सुना है मन्थराएं मंत्रणाएं कर रही हैं
सुना है स्वान के स्कूल में अब शेरों को पढ़ना है
सुना है शातिरों को शब्दकोषों पर भरोसा है
सुना है एक बूढ़े बाप ने दहेज़ जोड़ा है
सुना है दहेजखोर दामाद ने रिश्तों को निचोड़ा है
सुना है हमको खुदा से प्यार कम पर खौफ ज्यादा है
सुना है कोहरे में दिया दयनीय सा दिखने लगा है
सुना है पिता पर पैसा कम है पर प्यार ज्यादा है
सुना है मां की ममता खिलौनों की दुकानों से डरती है
सुना है एक मछली प्यासी हो कर पानी में ही मरती है
सुना है जिन्दगी जज़बात में सिमिटी है
सुना है एक तितली फूल के दामन से लिपटी है." -- राजीव चतुर्वेदी
Tuesday, February 21, 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment