"मेरी बहने कुछ उलटे कुछ सीधे शब्दों से
कविता बुनना नहीं जानती
वह बुनती हैं हर सर्दी के पहले स्नेह का स्वेटर
खून के रिश्ते और वह ऊन का स्वेटर
कुछ उलटे फंदे से कुछ सीधे फंदे से
शब्द के धंधे से दूर स्नेह के संकेत समझो तो
जानते हो तो बताना बरना चुप रहना और गुनगुनाना
प्रणय की आश से उपजी आहटों को मत कहो कविता
बुना जाता तो स्वेटर है, गुनी जाती ही कविता है
कुछ उलटे कुछ सीधे शब्दों से कविता जो बुनते हैं
वह कविताए दिखती है उधड़ी उधड़ी सी
कविता शब्दों का जाल नहीं
कविता दिल का आलाप नहीं
कविता को करुणा का क्रन्दन मत कह देना
कविता को शब्दों का अनुबंधन भी मत कहना
कविता शब्दों में ढला अक्श है आह्ट का
कविता चिंगारी सी, अंगारों का आगाज़ किया करती है
कविता सरिता में दीप बहाते गीतों सी
कविता कोलाहल में शांत पड़े संगीतों सी
कविता हाँफते शब्दों की कुछ साँसें हैं
कविता बूढ़े सपनो की शेष बची कुछ आशें हैं
कविता सहमी सी बहन खड़ी दालानों में
कविता बहकी सी तरूणाई
कविता चहकी सी चिड़िया, महकी सी एक कली
पर रुक जाओ अब गला बैठता जाता है यह गा-गा कर
संकेतों को शब्दों में गढ़ने वालो
अंगारों के फूल सवालों की सूली
जब पूछेगी तुमसे--- शब्दों को बुनने को कविता क्यों कहते हो ?
तुम सोचोगे चुप हो जाओगे
इस बसंत में जंगल को भी चिंता है
नागफनी में फूल खिले हैं शब्दों से
शायद कविता उसको भी कहते हैं." -----राजीव चतुर्वेदी
3 comments:
Beautiful!
शब्दों के साथ कई अनकहे भाव बुनते जाते हैं
मैं नहीं लोग कविता कहते हैं ....... बहुत ही अच्छी रचना
shyad maine bhi samjhaa kuch,,,kuch yaad aa gaya
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