"शब्दों का सन्नाटा तोड़ो --कुछ तो बोलो
मैं भी चुप हूँ
तुम भी चुप हो
इत्र फुलेलों और गुलाल से गलियाँ महक रही हैं
और पेड़ की हर डाली पर चिड़ियाँ चहक रही हैं
शब्दों का सन्नाटा तोड़ो --कुछ तो बोलो
तुम्हारी खामोशी ख़तरा लगती है
बोलो मेरी जान !!---तुम्हारे शब्दों में सामर्थ्य बहुत है
खून सर्द जब होता है तो शब्दों से सुलगाता हूँ मैं
आशंकाओं से आहात हो शब्दों को दोहराता हूँ मैं
शब्दों में संगीत पिरोओ कुछ तो बोलो
मैं भी चुप हूँ
तुम भी चुप हो
कुछ तो बोलो
बोलो मेरी जान !!---तुम्हारे शब्दों में सामर्थ्य बहुत है." ----राजीव चतुर्वेदी
मैं भी चुप हूँ
तुम भी चुप हो
इत्र फुलेलों और गुलाल से गलियाँ महक रही हैं
और पेड़ की हर डाली पर चिड़ियाँ चहक रही हैं
शब्दों का सन्नाटा तोड़ो --कुछ तो बोलो
तुम्हारी खामोशी ख़तरा लगती है
बोलो मेरी जान !!---तुम्हारे शब्दों में सामर्थ्य बहुत है
खून सर्द जब होता है तो शब्दों से सुलगाता हूँ मैं
आशंकाओं से आहात हो शब्दों को दोहराता हूँ मैं
शब्दों में संगीत पिरोओ कुछ तो बोलो
मैं भी चुप हूँ
तुम भी चुप हो
कुछ तो बोलो
बोलो मेरी जान !!---तुम्हारे शब्दों में सामर्थ्य बहुत है." ----राजीव चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment